सजीव सारथी

संगीतबद्ध गीत

पहले एल्बम 'पहला सुर' से

  1. सुबह की ताज़गी

  2. वो नर्म सी

  3. एक झलक

  4. बात ये क्या है जो

  5. रूह की बेज़ारियों को

  6. सम्मोहन


दूसरे सत्र से

  1. संगीत दिलों का उत्सव है

  2. बढ़े चलों

  3. आवारादिल

  4. मैं नदी

  5. जीत के गीत

  6. ओ मुनिया

  7. डरना झुकना छोड़ दे

  8. ओ साहिबा

  9. तू रूबरू

  10. One Earth- हमारी एक सभ्यता


'इंडो-रशिया मैत्री गीत'

सभी गीतों को सुनें-





आवाज़-मंच के सम्पादक

सजीव सारथी का नाम इंटरनेट पर कलाकारों की जुगलबंदी करने के तौर पर भी लिया जाता है। हिन्द-युग्म के वर्चुएल-स्पेस में गीत-संगीत निर्माण की नई और अनूठी परम्परा की शुरूआत करने का श्रेय सजीव सारथी को जाता है। अक्टूबर 2007 में सजीव ने संगीतकार ऋषि एस के साथ मिलकर कविताओं को स्वरबद्ध करने की नींव डाली। सजीव के निर्देशन में ही हिन्द-युग्म ने 3 फरवरी 2008 को अपना पहला संगीतमय एल्बम 'पहला सुर' ज़ारी किया जिसमें 6 गीत सजीव सारथी द्वारा लिखित थे।

4 जुलाई 2008 से हिन्द-युग्म ने अपने 'आवाज़' मंच की विधिवत शुरूआत की, जिसका दायित्व सजीव सारथी को सौंपा गया। सजीव ने यह दायित्व बखूबी निभाया। 4 जुलाई से लेकर 31 दिसम्बर 2008 तक सजीव के नियंत्रण में प्रत्येक शुक्रवार एक गीत रीलिज किया गया, जिससे 60 से अधिक कलाकारों (गायकों, संगीतकारों और गीतकारों) को एक विश्वव्यापी मंच मिला। आवाज़ ने 'पॉडकास्ट कवि सम्मेलन', 'सुनो कहानी', 'ओल्ड इज़ गोल्ड', 'महफिल-ए-ग़ज़ल', 'ताज़ा सुर ताल', 'ऑनलाइन पुस्तक विमोचन', 'गीतकास्ट प्रतियोगिता' जैसे कई लोकप्रिय स्तम्भों की शुरूआत की। दूसरे सत्र के संगीतबद्ध गीतों को रीलिज करने की कड़ी में सजीव सारथी द्वारा 10 गीत लिखे गये। सजीव ने भारत में रूसी दूतावास के लिए 'भारत-रूस मित्रता' पर 'द्रुज़बा' गीत की रचना की।

जन्म हुआ २४ फरवरी १९७४ को दक्षिण भारत के एक छोटे से गाँव में। चार साल के थे जब दिल्ली आये, तब से यहीं हैं। बचपन से ही साहित्य , संगीत और सिनेमा , इनके जीवन के आधार रहे, वाणिज्य में सनातन किया ताकि कोई अच्छी नौकरी मिले वो मिली भी, पर मन हमेशा रचनात्मक कार्य-कलापों में ही लगा। स्कूल से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी शुरू हो चुकी थी, जो कॉलेज़ में पहुँच कर अपने चरम पर पहुँची।

मूलतः एक गीतकार हैं, जो कविताओं में अपने आपको तलाश करते हैं, कहानी-पटकथा-संवाद भी लिख लेते हैं, कुल सात लघु फ़िल्में और ३ फुल लेंथ फिल्मे लिख चुके हैं, जिनमें से मात्र दो लघु फिल्मों को ही बन कर प्रसारित होने का सौभाग्य मिल पाया है, एक संगीत समुदाय के सदस्य हैं, दो धारावाहिकों के लिए शीर्षक गीत लिखने के साथ साथ बतौर सह निर्देशक भी काम कर चुके हैं ..... और कोशिशें जारी है।

गीतकार कवियों को अधिक पढ़ते हैं, इसलिये जाहिर है कि गुलज़ार साब, जावेद अख़्तर, निदा फ़ाज़ली, नीरज, इंदीवर, मजरूह, रविंद्र जैन सभी धड़कनें हैं इनकी, यूँ तो थोड़ा-थोड़ा निराला, नागार्जुन, बशीर बद्र, मीर, ग़ालिब सभी को पढ़ा है। शैलेंद्र इनके अतिप्रिय हैं जिनकी इन दो पक्तियों में इनके अनुसार इनके जीवन का सार है-

" आबाद नहीं बरबाद सही, गाता हूँ ख़ुशी के गीत मगर,
जख्मों से भरा सीना है मेरा , हँसती है मगर ये मस्त नज़र "

संपर्क-
७७७, सेक्टर ६
आर के पुरम, नई दिल्ली-११००२२
sajeevsarathie@gmail.com
09871123997

मुलाक़ात
हिन्द-युग्म के 'पहला सुर' की सफलता के बाद सजीव सारथी का साक्षात्कार एआईआर एम-रैनबों और सामुदायिक रेडियो डीयू-एमएम पर प्रसारित किया गया। सजीव सारथी के साथ बातचीत नीचे के प्लेयर से सुनें।

रचना सागर

“परिस्थितियाँ व प्रोत्साहन कभी भी, किसी को भी कवि बना सकते हैं” ऐसा मानना है कवियत्री रचना सागर का। रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रुची थी किंतु कविता भी ये लिख सकती हैं इन्होंने तब तक नहीं सोचा था, जब तक कि एक घटना ने इनकी सोच को नहीं बदल दिया। एक बार स्कूल के एक नाटक में हिस्सा लेने के लिये इन्होंने अपनी तैयारी की और बहुत खुश हो अपने पिता जी को भी अपने साथ ले गई। इनके पिता जी ने जब देखा कि ये इतने लोगों (स्कूल व बाहर) के सामने नाटक में हिस्सा लेंगी तो यह बात इनके पिता को अच्छी नहीं लगी और इनके नहीं चाहने के बावजूद घर ले आये। इस घटना ने इन्हें अंतर्मुखी बनाया और तब इन्होंने सोचा की जब बाहर नहीं जा सकते तो कविता को ही अपना माध्यम चुना जाय। उसी दौरान इन्होंने अपनी पहली रचना प्यारे फूल (01/10/1995) में लिखी। परिस्थितिवश ये आगे ज्यादा लिख नही पाईं और जो भी लिखा उसे प्रकाशित न करा सकीं। तथापि इनकी रचनात्मकता थमी नहीं और कविताओ और रचनाओ को अच्छी तरह समझने हेतु उर्दु भाषा का गहन अध्ययन किया। साथ ही मनोविज्ञान में परास्नातक (M.A.) की परीक्षा उत्तीर्ण की जिससे बच्चों के मनोविज्ञान के ऊपर कुछ किया जा सके। शादी के पश्चात पति अभिषेक जी के द्वारा राजीव रंजन जी के सम्पर्क मे आईं और राजीव जी के प्रोत्साहन , पति और बच्ची (आर्श्या) के प्रेरणा से फिर से लिखना शुरू किया और अंतरजाल पर अपना ब्लॉग"मेरी कुछ यादें पर लिखा। जल्द ही "हिन्द-युग्म" द्वारा "बाल-उद्यान" शुरू होने पर इन्हे भी लिखने का मौका मिला।

नाम- रचना सागर
ई-मेल- abhisheksagar143@gmail.com
पता- पत्नि श्री अभिषेक सागर
मकान संख्या- 576 , सेक्टर -30
फ़रीदाबाद (हरियाणा)- 121003

बाल-उद्यान पर इनका वार - मंगलवार


अक्षय चोटिया

नाम- मास्टर अक्षय चोटिया
शिक्षा- कक्षा 6
जन्म स्थान- पिलानी
जन्म तिथी- 24-02-96
रुचि- कविता, कहानी बनाना, खेलना, घूमना, क्रीकेट, जूडो-करांटे चैम्पियन, चित्रकला इत्यादि

ये बहुत मस्ती करते हैं, ये चाहते हैं कि ये बस छोटे ही बने रहें और हमेशा सबका प्यार पाते रहें।


बाल-उद्यान पर इनकी तिथियाँ- ६वीं और २०वीं

ज़ाकिर अली ‘रजनीश’

जन्म: एक जनवरी उन्नीस सौ पिचहत्तर (01-01-1975, लखनऊ)

शिक्षा: एम0ए0 (हिन्दी), बी0सी0जे0, सृजनात्मक लेखन (डिप्लोमा।
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ से “हिन्दी का बदलता स्वरूप एवं पटकथा लेखन” फेलोशिप (वर्ष–2005)।

लेखन: कहानी, उपन्यास, नाटक एवं कविता विधाओं में वर्ष 1991 से सतत लेखन।

प्रकाशन: राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में एक हजार से अधिक रचनाएं प्रकाशित।

अनुवाद: अंग्रेजी, मराठी एवं बंग्ला भाषा में अनेक रचनाओं का अनुवाद।

मीडिया लेखन: दूरदर्शन से अनेक धारावाहिक (मीना, समस्या, मात) प्रसारित, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण।

प्रकाशित पुस्तकें: गिनीपिग (वैज्ञानिक उपन्यास, वर्ष–1998), विज्ञान कथाएं (कहानी संग्रह, वर्ष–2000)

बाल उपन्यास: सात सवाल (हातिम पर केन्द्रित बाल उपन्यास, वर्ष–1996), हम होंगे कामयाब/मिशन आजादी (बाल अधिकारों पर केन्द्रित बाल उपन्यास, वर्ष–2000/2003), समय के पार (पर्यावरण पर केन्द्रित वैज्ञानिक बाल उपन्यास 8 अन्य विज्ञान कथाओं के साथ प्रकाशित, वर्ष–2000)

बाल कहानी संग्रह: मैं स्कूल जाऊंगी (मनोवैज्ञानिक बालकथा संग्रह, वर्ष–1996), सपनों का गांव (पर्यावरण परक बालकथा संग्रह , वर्ष–1999), चमत्कार (बाल विज्ञान कथा संग्रह, वर्ष–1999), हाजिर जवाब (बाल हास्य कथा संग्रह, वर्ष–2000), कुर्बानी का कर्ज (साहसिक कथा संग्रह वर्ष–2000), ऐतिहासिक गाथाएं (ऐतिहासिक कथा संग्रह, वर्ष–2000), सराय का भूत (लोक कथा, वर्ष–2000), अग्गन-भग्गन (लोक कथा, वर्ष–2000), सोने की घाटी (रोमांचक कथा संग्रह, वर्ष–2000), सुनहरा पंख (उक्रेन की लोक कथाएं, वर्ष–2000), सितारों की भाषा (अरब की लोक कथाएं, वर्ष–2005), विज्ञान की कथाएं (बाल विज्ञान कथा संग्रह, वर्ष–2006), ऐतिहासिक कथाएं (ऐतिहासिक कथा संग्रह, वर्ष–2006), Best of Hi-tech Tales (विज्ञान कथा संग्रह, वर्ष–2006), Best of Historical Tales (ऐतिहासिक कथा संग्रह, वर्ष–2006), इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक श्रंख्ला के अन्तर्गत विविध विषयों पर बीस अन्य पुस्तकें प्रकाशित (वर्ष–2000)

नवसाक्षर साहित्य: भय का भूत (अंधविश्वास पर केन्द्रित, वर्ष–2000), मेरी अच्छी बहू (पारिवारिक सामंजस्य पर केन्द्रित, वर्ष–2000), थोडी सी मुस्कान (परिवार नियोजन पर केन्द्रित, वर्ष–2000), संयम का फल (एड्स पर केन्द्रित, वर्ष–2000)

सम्पादित पुस्तकें: इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियां (दो खण्डों में 107 कहानियां, वर्ष–1998), एक सौ इक्यावन बाल कविताएं (वर्ष–2003), तीस बाल नाटक (वर्ष–2003), प्रतिनिधि बाल विज्ञान कथाएं (वर्ष–2003), ग्यारह बाल उपन्यास (वर्ष–2006)

पुरस्कार / सम्मान: भारतेन्दु पुरस्कार (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, वर्ष–1997), विज्ञान कथा भूषण सम्मान (विज्ञान कथा लेखक समिति, फैजाबाद, उ0प्र0, वर्ष–1997), सर्जना पुरस्कार (उ0प्र0 हिन्दी संस्थान, लखनऊ, वर्ष–1999, 2000, 2000), सहस्राब्दि हिन्दी सेवी सम्मान (यूनेस्को एवं केन्द्रीय हिन्दी सचिवालय, दिल्ली, वर्ष–2000), श्रीमती रतन शर्मा स्मृति बालसाहित्य पुरस्कार (रतन शर्मा स्मृति न्यास, दिल्ली, वर्ष–2001), डा0 सी0वी0 रमन तकनीकी लेखन पुरस्कार (आईसेक्ट, भोपाल, वर्ष–2006) सहित डेढ़ दर्जन संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरस्कृत। ‘डिक्शनरी ऑफ इंटेलेक्चुअल’, कैम्ब्रिज, इंग्लैण्ड सहित अनेक संदर्भ ग्रन्थ में ससम्मान उदधृत। ‘बाल साहित्य समीक्षा’ (मासिक, कानपुर, उ0प्र0) का मई 2007 अंक विशेषांक के रूप में प्रकाशित।

अन्य विवरण: भारतीय विज्ञान लेखक संघ (इस्वा, दिल्ली) भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति (फैजाबाद, उ0प्र0) आदि के विज्ञान लेखन प्रशिक्षण शिविरों में सक्रिय योगदान। ‘तस्लीम’ (टीम फॉर साइंटिफिक अवेयरनेस ऑन लोकल इश्यूज़ इन इंडियन मॉसेस) के सचिव के रूप में वैज्ञानिक चेतना का प्रचार/प्रसार। ‘बच्चों के चरित्र निर्माण में बाल कथाओं का योगदान’ लघु शोध कार्य। अनेक पत्रिकाओं के विशेषांकों का सम्पादन। वर्तमान में राज्य कृषि उत्पादन मण्डी परिषद, उ0प्र0 में कार्यरत।

सम्पर्क सूत्र:
निवास: नौशाद मंजिल, तेलीबाग बाजार, रायबरेली रोड, लखनऊ-226005 (उ0प्र0) भारत।

पत्राचार: (साधारण डाक) पोस्ट बॉक्स नं0- 4, दिलकुशा, लखनऊ-226002 (उ0प्र0) भारत।

मोबाईल: 09935923334

E-mail: zakirlko@gmail.com


बाल-उद्यान पर इनका वार - ........


सुनीता चोटिया

नाम- श्रीमती सुनीता चोटिया (शानू)
पति- श्री पवन चोटिया
दो पुत्र- आदित्य एवं अक्षय
शिक्षा- होम-साइंस में स्नात्त्कोत्तर
जन्म-तिथि- 06.08.1970
जन्म-स्थल- पिलानी (राजस्थान)
रूचि- लेखन (कविता, कहानी, लेख),चित्रकला, तैराकी, दूरगामी-यात्राएँ,
कार्यरत- दिल्ली में स्वयं का चाय निर्यात का व्यापार

बस एक ही बात कहना चाहती हैं ज़िन्दगी के चार पल हैं कुछ हम जी चुके है और कुछ बाकी है जो बाकी है उसे हँसते-हँसते हम सब मिल कर बिता सकें इसके लिये बहुत जरूरी है कि हम एक युग्म की तरह रहें जीवन एक खूबसूरत कविता है और इसे जी भर के जीएँ।

संपर्क-
एम-५०, प्रताप नगर
दिल्ली-५७
ईमेल- shanoo03@gmail.com
चिट्ठा- मन पखेरू फ़िर उड़ चला


बाल-उद्यान पर इनकी तिथियाँ- ७वीं और २१वीं


ऋषिकेश खोड़के 'रूह'

लेखक की काव्य-बेल के बीज संभवत: अपने नाना के भजन सुनते-सुनते पड़े, फ़िर इनकी आई जो विशेष अवसरों पर त्वरित कविता करती और बड़े चाव से सबको सुनाती और सराहना पाती थी, ने अचेतन मे पड़े काव्य-बीज की सिंचाई की। दादी की कहानियाँ इन्हें कविता के प्रारंभिक विषय उपलब्ध कराती रहीं, पर साहित्य साधना के लिये अत्यंत आवश्यक अध्ययन सामग्री इनके बाबा ने जो स्वयं मराठी साहित्य मे काफी रुचि रखते हैं, बड़ी मात्रा में उपलब्ध करवाया, इसके अलावा समय-समय पर इनके मामा ने जो स्वयं अच्छे कवि एवं लेखक भी हैं, इनका उचित मार्गदर्शन किया और इनकी गलतियों को सुधारने में इनकी सहायता की। तो एक प्रकार से साहित्य की यह बेल पारिवारिक लालन-पालन से विकसित हुई।

विभिन्न कवियों की रचनाएँ एवं बृहत् साहित्य पढ़ते-पढ़ते लेखन शैली में बदलाव भी आता रहा एवं अंतत: इन्होंने स्वयं की एक वाचन पद्धति बना कर उसके अनुरूप लिखना प्रारंभ किया जिसमें इनकी समस्त रचनाएँ (कविता, हानी, ग़ज़ल, लेख इत्यादि) पिरोई हुई हैं |

कॉलेज़ के दिनों मे इन्हें गजलें सुनने-पढ़ने का चाव हुआ और इस विधा में भी लेखन प्रयास करते रहते हैं , हां इसी विधा के प्रभाव से इन्होंने अपना उपनाम "रुह" रख लिया।

आज इनकी यह काव्य-बेल रोज़ एक नया सोपान चढ़ रही है और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित रचनाएँ और मेरी प्रकाशित पुस्तक "शब्द-यज्ञ" इस बेल की पुष्प बन कर सरस्वती को नमन कर रही हैं।

"जाने क्या क्या लिखता रहता है बैठ कर |
पढ़ कर देखें "रुह" के ज़ज़्बात,चलो आओ ||"

जन्म : २५/०४/१९७५, भोपाल (म.प्र.)
शिक्षा : एम. काम.,एम. एस. सी. ( कम्पयुटर साईंस )
वर्तमान व्यवसाय : साफ्टवेयर इंजीनियर, पुणे ( महाराष्ट)
ईमेल: rishikeshkhodke@gmail.com , rishikeshkhodke@yahoo.co.in
ब्लाग(चिट्ठा) : http://shabdayagya.blogspot.com , http://mahaanagarkaakavya.blogspot.com


बाल-उद्यान पर इनकी तिथियाँ- १०वीं और २४वीं


निखिल आनंद गिरि

प्रकाशित कवितायें

  1. वक़्त लगता है ईनामी कविता

  2. तुम सिखा दो यूनिकविता

  3. मैं नहीं हूँ... (ईनामी कविता)
  4. वो गुमनाम नहीं होगा... (ईनामी कविता)

  5. हो सके तो.....(ईनामी कविता)

  6. बाईस बरस

  7. काश.......

  8. एक अधूरा सच

  9. एक ही रोज़

  10. इन दिनों

  11. कह री दिल्ली

  12. क्षणिकाएँ .............

  13. बड़े लोगों से

  14. अपना घर

  15. मैं (भाग-१)

  16. मैं......(अन्तिम भाग)

  17. मैं मीडिया का एक छात्र....

  18. ओ सूरज की पहली किरण!....

  19. ...खुश बहुत हैं ये आदमी जैसे

  20. ...मोतियों की आस में

  21. ....तेरा अक्स

  22. ..सुनामी में तबाह हुई जिंदगी को समर्पित

  23. क्षणिकाएँ.....

  24. मैं अगर मैं न रहूँ.....

  25. ...एक ख़ास पल

  26. शोकगीत

  27. नज्म इक रिस रही है सीने से

  28. क्या कहें-क्या क्या ज़माना चाहता है...

  29. जोगीरा सा रा रारा....

  30. जोगीरा सा रा रा रा....

  31. अंधेरे में जुगनू....

  32. मैं पथ का कंकड़, कैसे हो मंदिर की अभिलाषा

  33. जो भी मिलता है यहाँ, मिलता है अपने काम से...

  34. छत पर मैं हूँ और चाँद है...

  35. दूरियां कब कर सकीं हैं प्रेम का माधुर्य कम...

  36. मुझे वक्त दे मेरी जिंदगी....

  37. नींद में डूबा चाँद चुराना क्या मुश्किल है....

  38. चांद छूना चाहता था...

  39. मेरे आँसू यही कहते हैं तुमसे बार-बार...

  40. "हम ख़बर हैं, बाकी सारा भ्रम है.....”

  41. बेलिबासों की गली में सर झुकाते रह गए...

  42. विकल्प...

  43. कच्ची उम्र की लड़कियां

  44. यात्रा का यह पड़ाव.....

  45. मॉल है या कि अजायबघर है..

  46. तुम्हारा चेहरा मुझे ग्लोब-सा लगने लगा है...

  47. रिश्तों की एक पुड़िया मेरे पास है........

  48. प्यार ने पैदा किए हैं वैज्ञानिक


जन्म- ९ अगस्त
जन्मस्थान- छपरा (बिहार)
निवास स्थान- समस्तीपुर
पिता श्री सुरेन्द्र गिरि सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी, बिहार सरकार, माँ गृहणी, चार भाइयो-बहनों में सबसे छोटे।
पिता के स्थानान्तरण की वजह से बिहार और झारखण्ड के कई क्षेत्रों में समय गुजरा। स्कूल-स्तरीय शिक्षा डीएवी हेहल, राँची से, स्नातक करीम सिटी कॉलेज़, जमशेदपुर। मीडिया के क्षेत्र में रुचि थी, सो जन-सम्प्रेषण (मास कम्यूनिकेशन) से परास्नातक (एम.ए.) की डिग्री हासिल करने के लिए जामिया में दाखिला लिया, और मीडिया का मास्टर होने का सर्टिफिकेट हासिल किया।
स्कूल के ज़माने से कविताओं का शौक लगा, पहले कविताएँ छिपाकर लिखते थे, फ़िर समाचर-पत्र में कविताएँ छपीं, तो घरवालों को पता चला कि बेटा कवि हो गया है। शुरू से ही अच्छे छात्र, पापा का सपना था कि बेटा डॉक्टर-इंज़ीनियर बने। इन्होंने अपने पिता के सपने को पूरा किया और बन गये समाज की नब्ज़ पकड़ने वाला डॉक्टर।
जमशेदपुर में पढ़ाई के साथ-साथ दैनिक जागरण, 'प्रभात ख़बर' में नौकरी भी की, प्रभात ख़बर का गहरा प्रभाव। ग्रेजुशन में ही एक डॉक्यूमेंटरी बनाई 'ऑन द एज़॰॰॰(जमशेदपुर की ही एक चूना-भट्टा बस्ती पर)"॰॰॰॰ फ़िर 'रेडियो जामिया ९०॰४ एफ़एम', वॉयस ऑफ इंडिया न्यूज़ चैनल, महुआ न्यूज़ से होते हुए फिलहाल ज़ी(UP) की नौकरी....

शौक- साहित्य, गीत-संगीत, क्रिकेट और रेडियो।

संपर्क - 09711074170
Email- memoriesalive@gmail.com

बैठक-मंच के सम्पादक
हिन्द-युग्म पर इनका वार- रविवार

गौरव सोलंकी

प्रकाशित कवितायें

  1. मुझे आज़ाद होना है

  2. चलो कुछ बात करें...

  3. मैं अकेला ही रहा

  4. भगवान...तुम्हारे लिए

  5. मुझसे दूर

  6. अधम धर्म

  7. मुश्किल लगता है

  8. विडम्बनाएँ

  9. एक पागल दूजे से बोला

  10. मेरा युग

  11. मुझको भी खबर है

  12. मैंने प्रेम नहीं माँगा प्रिये

  13. डर

  14. पिता से

  15. पता है चन्दू

  16. क्षणिकाएं

  17. खुदा के जी में जाने क्या है

  18. कुछ क्षणिकाएँ

  19. लड़कियाँ

  20. एकांत की ख़वाहिशें

  21. निश्चय

  22. तेरह क्षणिकाएँ

  23. बारह क्षणिकाएँ

  24. तुम ज़िन्दा हो

  25. प्यास में थीं मुक्तियाँ

  26. ग्यारह क्षणिकाएँ

  27. तेरी याद: कुछ क्षण

  28. चलो भारत को बंटवाएँ

  29. मैं बिक गया हूँ

  30. मेरे सीने में क्या है...

  31. जुनून

  32. मेरे मरने के बाद

  33. बाज़ार जा रही हो तो...

  34. रात और दर्द

  35. अम्मा, वो चाहिए मुझे

  36. बदजात परिन्दे हम

  37. सींखचों का समाज

  38. क्षणिकाएँ

  39. बेशर्म सन्नाटा

  40. एकतरफ़ा मोहब्बत

  41. चाँद और
    क्षणिकायें

  42. माँएं नहीं मरती

  43. प्यार नहीं करने वाली लड़कियाँ

  44. आसमान फिर भी नहीं गिरता

  45. तेरी वो सहेली
    कहती है

  46. स्टेशन पर

  47. हैं सब खफ़ा खफ़ा

  48. हमारा एक बाग था

  49. माँ : ग्यारह क्षणिकाएँ

  50. सबसे खराब
    कविता

  51. और उन लड़कियों से किया इश्क़ हमने

  52. माँ के लिए कुछ क्षणिकाएँ और अपने लिए अपराधबोध

  53. तुरही क्या होता है पापा?

  54. मार डालूं तुम्हें

  55. इससे पहले कि शराब पीना खो दे अपनी अश्लीलता

  56. बीच सड़क पर दहाड़ें मार-मारकर रोने की प्यारी इच्छा के लिए

  57. आँख में धूप है

  58. अब, आस्था, लड़कियाँ और पहला चुम्बन

  59. हेमंत करकरे नाम का एक आदमी मर गया था

  60. बीच के लोग रहेंगे देर तक ज़िन्दा

  61. जिन आदमियों का छूटा हुआ है बहुत सारा विलाप


इनका जन्म 7 जुलाई, 1986 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के 'जिवाना गुलियान' गाँव में हुआ। माता-पिता संगरिया (राजस्थान) में अध्यापक हैं, अत: शिक्षा-दीक्षा संगरिया में ही हुई। इंजीनियर बनने की लगन के साथ-साथ साहित्य का शौक चलता रहा और एक नन्हा सा कवि बचपन से ही भीतर पलता रहा। एक दिन हाथों ने लेखनी को थाम ही लिया और लेखन शुरू हो गया। 15 वर्ष की आयु में काव्य-लेखन आरंभ किया। कवि के अनुसार वे अधिक संवेदनशील हैं, इसलिये आसपास जो कुछ भी छोटा-बड़ा दिखता रहा, वे उसे कागज पर उकेरने लगे।


आई.आई.टी. रुड़की में प्रवेश के बाद शौक अधिक गति से बढने लगा और कवि के शब्दों में अब वे अधिक 'परिपक्व' कविताएँ लिखने लगे है। साहित्य पढते समय रुचि अब भी गद्य में ही रही और एक कहानीकार भी भीतर करवट लेने लगा। कहानियाँ लिखनी शुरू की और फिर उपन्यास भी। अभी ये आई.आई.टी. रुड़की में चतुर्थ वर्ष के छात्र हैं। अब अभियांत्रिकी छोड़कर सृजनकार बनने का मन होने लगा है और मानव मन के ऐसे ही सपनों पर, जिन्हें यह सोचकर छोड दिया जाता है कि इनका तो पूरा होना असंभव है, इन्होंने अपना पहला उपन्यास हाल ही में पूरा किया है।



हिन्द-युग्म पर इनका वार- गुरुवार


संपर्क-

पुत्र श्री युवराज सोलंकी (वरिष्ठ अध्यापक)
वार्ड नं.-21
गुरूनानक बस्ती
संगरिया
जिला-हनुमानगढ़ (राजस्थान)
पिन कोड-335063


ई-मेल- aaawarapan at gmail dot com

कहानी-कलश पर इनकी तिथि- ११वीं


श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'

श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' का जन्म 10 अक्तूबर 1959 को उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी स्थित गांव बढवारी ऊधौ में विजयादशमी की पूर्व संध्या पर हुआ। शिक्षक पिता पण्डित सत्यदेव मिश्र एवं धार्मिक माता अन्नपूर्णा देवी के दूसरे पुत्र श्रीकान्त को पिता से उच्च नैतिक मूल्य, वैज्ञानिक सोच तथा धार्मिक मां से सहज मानवीय संवेदना की विरासत मिली। उत्तर प्रदेश की तराई में स्थित गांव के पलाशवनों से घिरे प्राकृतिक परिवेश में सेमर तथा टेशू के फूलों के बीच बचपन में ही प्रकृति से पहला प्यार हो गया। यद्यपि सातवीं कक्षा में पढते हुये पहली बार कविता लिखी फिर भी गद्य पहला प्यार था। रेलवे प्लेटफार्म पर, बस में प्रतीक्षा के दौरान अथवा हरे भरे खेतों के बीच पेड क़े नीचे, हर पल कागज पर कुछ न कुछ लिखते ही रहते। बाद में जीवन की आपाधापी के बीच में गद्य के लिये समय न मिलने से हृदय की कोमल संवेदनायें स्वतः कविता के रूप में पुनः फूट पडीं।

हाईस्कूल की परीक्षा पास के कस्बे बरवर से करने के उपरान्त कालेज की पढायी हेतु काकोरी के अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मल' के नगर शाहजहांपुर आ गये। आपात स्थिति के दिनों में लोकनायक जयप्रकाश के आह्वान पर छात्र आंदोलन में सक्रिय कार्य करते हुये अध्ययन में भारी व्यवधान हुआ। तत्पशचात बी एस सी अंतिम बर्ष की परीक्षा बीच में छोड वायुसेना में शामिल होकर विद्दयुत इंजीनीयरिंग में डिप्लोमा किया।

कैमरा और कलम से बचपन का साथ निभाते हुये मल्टीमीडिया एनीमेशन, विडियो एडिटिग में विशेषज्ञता और 1997 से 2003 तक नागपुर रहते हुये कम्प्यूटर एप्लीकेशन में स्नातक (बी सी ए) शिक्षा प्राप्त की।

1993 में कीव (यूक्रेन) में लम्बे प्रवास के दौरान पूर्व सोवियत सभ्यता संस्कृति के साथ निकट संपर्क का अवसर मिला। तदुपरान्त अन्य अवसरों पर ओमान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान तथा भूटान की यात्रा से वैश्विक विचारों में संपुष्टता हुयी।

वायुसेना में रहते हुये असम के जोरहाट से गुजरात में जामनगर दक्षिण में बंगलौर से लेकर नागपुर, कानपुर, आगरा, चण्डीगढ सहित सारे भारत में लम्बे प्रवास से सम्पूर्ण भारतीय होने का गौरव। विभिन्न समाचार पत्रों, कादम्बिनी तथा साप्ताहिक पांचजन्य में कविता लेख एवं कहानी का प्रकाशन। वायुसेना की विभागीय पत्रिकाओं में लेख निबन्ध के प्रकाशन के साथ कई बार सम्पादकीय दायित्व का निर्वहन। विभाग में कम्प्यूटर शिक्षा एवं राजभाषा प्रोत्साहन कार्यक्रमों में सक्रिय योगदान।

संप्रति : चण्डीगढ वायुसेना मे सूचना प्रोद्यौगिकी अनुभाग में वारण्ट अफसर के पद पर कार्यरत।

हिन्द-युग्म पर इनका वार- मंगलवार

योगदान -

धूप आने दो

कब से आ मन में समाये

और नहीं अब बोलूँगा

सुख दुख

प्राणप्रिय 'काव्य' तेरा स्वागत

जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक

आज भी याद है मुझे

ओ पिता !

अपरिचिता

द्वितीय सर्ग

तम की कोख सवेरा

कृति पीड़ा

जीवन बाँसुरी

स्वागत हे नव वर्ष !

लहरों के आने तक

कौन हूँ मैं...

मैं क्या जानूँ...

पुरू

क्रमशः

आया बसंत

तुम्हारा रिश्ता

स्वयं बोध

समय

निर्बंध हुआ है हर यौवन

हॄदय पर हस्ताक्षर

तुम्हारी पदचाप

महंगाई के डण्डे

घिन आने लगी है 'घोड़ामण्डी' से



कहानी-कलश पर इनकी तिथि- ४थी


श्रवण सिंह

लेखक का जन्म ६ सितम्बर १९७५ को पटना में हुआ। लेखक ने आइ. एस. एम. ,धनबाद से अभियांत्रिकी में डिग्री ली।

इनको कुछेक साल इधर-उधर (कुछेक जाने-माने बड़े नामों के साथ) व्यर्थ करने के पश्चात इस रूटीन ज़िन्दगी की व्यर्थता का शिद्दत से अहसास हो गया और तत्पश्चात कुछ लीक से हट के चलने वाले शौक की (बुद्धत्व व कैवल्य की ) प्राप्ति हो गई।

आजकल अहमदाबाद में बच्चों को अभियंता बनाने की फैक्ट्री , माने कोचिंग संस्थान चला रहे हैं। लिखने-पढने का शौक बचपन से रहा। जो मिल जाए, पठनीय है और उसे पढ़ लेना चाहिए- इस विचारधारा का मुरीद हैं।

साहित्य की लगभग हर विधा मे हाथ साफ कर लेते हैं। पर मुख्यतः स्वान्तः सुखाय ही रही हैं अभी तक । हाँ यार-दोस्त मुफ्त के मजे लूट जाते हैं- ये तो वैसे भी उनके अधिकार-क्षेत्र में आता है।

दिल में क्रान्तिकारी विचार(वामपंथी नही) रखते हैं... आजकल की शिक्षा प्रणाली के घनघोर आलोचक हैं। अपने विचारों के अनुरूप एक स्कूल खोलना चाहते हैं।

और अन्तिम बात - इनके मन बाबा बनने की भी तमन्ना भी कुलाँचे मारती है, और इनका मानना है कि इनको रोकने वाले ये कौन होते हैं।


संपर्क-
३२८, प्लेटिनम प्लाज़ा
बोड़कदेव, अहमदाबाद (गुजरात)- ३८००१५
ईमेल- sweatguy6900@gmail.com
चिट्ठा- अपनी तलाश


इनकी तिथि- १५वीं

मनीष वंदेमातरम्

कवि मनीष 'वंदेमातरम्' का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाजीपुर जनपद के एक छोटे से गाँव नसीरपुर में हुआ। छुटपन से ही हिन्दी साहित्य में विशेष रूचि थी। मनीष ने दो उपन्यासों 'श्रद्धांजली' और 'वसुंधरा' तब ही लिख दिया था, जब वे १०वीं कक्षा के विद्यार्थी थे। ये दोनों उपन्यास, वे अपने एक मित्र को भेंट कर चुके हैं। स्नातक की पढ़ाई के लिए लेखक इलाहाबाद आ गये, जहाँ इन्होने हिन्दी साहित्य की कई अन्य विधाओं में सृजन आरम्भ किया। लेखक ने अपने एक संस्मरण 'असमनिया' जो कि मित्र-मंडली में बहुत लोकप्रिय रही, को प्रकाशनार्थ 'हंस', 'कथादेश' सरीखें कई पत्र-पत्रिकाओं में भेजी, परन्तु सफलता हाथ नहीं आई। अपने कुछ अनन्य मित्रों के साथ लेखक ने समाचार पत्रों के सम्पादकीय विभाग से भी सम्पर्क किया। वर्तमान में लेखक इलाहाबाद में रहकर प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।


रचनाएँ-
उपन्यास- वसुंधरा एवम् श्रद्धांजली।
संस्मरण- असमनिया एवम् कानी।
नाटिका- स्वर्ग में आरक्षण।
कविता- सैकड़ों कविताएँ।



सम्पर्क-सूत्र-
ग्राम व पोस्ट- नसीरपुर,

जनपद- ग़ाज़ीपुर (उ॰प्र॰)



इनका वार- शुक्रवार







योगदान-


आख़िर जीना कौन नहीं चाहता!

सपने स्पष्ट

बूढ़ा बरगद

तो कितना अच्छा था!

मैं मरना चाहता हूँ

जब आदमी मरता है

आदमी की परिभाषा

आ जाओ

आज रात भर

लाश में इंसान

फिर तुम नहीं आयी

तुमसे बहुत प्यार करता हूँ

तुम्हारी कमी

गलती तुम्हारी नहीं है

आओगी ना?

चाहता हूँ मैं

इस फागुन ज़रूर से ज़रूर आना

शुरूआत नये रिश्ते की

अज़ीब यह वीराना लगता है

कब होगा ऐसा?

मेरे बगल वाली नदी

औरत क्या है?

ग़ज़लगो, क्या इसे ग़ज़ल कहेंगे?

सनीचरी

देखो मेरी नज़र से

अहमियत भूख की

रहेगा ही

बुचईया

मेरी क्षणिकाएँ

मेरे गाँव की एक और बात

बुनियादी फ़र्क

न्याय

होता कभी यूं भी

इस साल गाँव में बाढ़ आयी है

रिश्ते (क्षणिकाएं)

इस साल गाँव में 'रमलील्ला' नहीं हुई

किताब-दो कविताएं

क्षणिकाएं

दिल्ली में कड़ाके की ठंड, पारा दो डिग्री से नीचे

फुलझड़ियां (क्षणिकाएं)

तुषार जोशी

तुषार जोशी का जन्म महाराष्ट्र राज्य के नागपुर नगर में हुआ। ये ज्यादातर कविताएँ मराठी में लिखतेँ हैं। इन्हे हिन्दी से लगाव है। कुछ कविताएँ ये हिन्दी में भी लिखते हैं। इनका मराठी साहित्य मनोगत स्थल पर प्रकाशित है।









हिन्द-युग्म पर इनका वार- शनिवार








कहानी-कलश पर इनकी तिथि- ७वीं

वरुण स्याल

इनका जन्म दिल्ली नगर में हुआ। ये सदा नई दिल्ली का वासी रहे हैं। स्कूल के समय से ही कविता पढने एवं लिखने में रुचि रही है। महादेवी वर्मा, निराला जी, एवं मैथिलीशरण गुप्त जी की कुछ रचनायें पढ़ने का सौभाग्य तभी प्राप्त हुआ। कॉलेज मे थियेटर के दौरान कुछ नाटक अवश्य पढ़ने को मिले पर कविता-जगत की कोई ख़बर न रही। आज ये आई आई टी - दिल्ली में नागरिक अभियान्त्रिकी (सिविल इंजीनियरिंग) के अंतिम वर्ष के छात्र हैं। बीच में कुछ समय तक हिन्दी-साहित्य से अछूते रहे, परन्तु अब हिन्द-युग्म द्वारा फिर एक नूतन प्रारंभ करने का अवसर मिला है। कॉलेज में आने के उपरान्त केवल अंग्रेज़ी में ही कविता लिखते रहे परन्तु कभी भी तृप्ति की अनुभूति नहीं हुई। अब जब हिन्दी में कविताएँ लिखने लगे हैं, एक नया मार्ग दिखाई पड़ा है।


संपर्क-
ईसी-१२, कुमायुँ हॉस्टल
आईआईटी दिल्ली, हौज़ खास
नई दिल्ली-११००१६
मोबाइल- ९९६८२१६११२
ई-मेल- varun.co.in@gmail.com


इनका वार- रविवार



योगदान-

विपुल शुक्ला

इनका जन्म गाडरवारा जिला नरसिहपुर मे 28 मार्च 1988 को हुआ। इनके जन्मोपरांत सारा परिवार भोपाल के निकट होशंगाबाद मे आकर बस गया। कवि की पूरी शिक्षा-दीक्षा भी यहीं पर हुई। इन्होंने जिस विद्यालय मे शिक्षा ग्रहण की उसी विद्यालय में इनकी माताश्री श्रीमती आभा शुक्ला हिन्दी की शिक्षिका हैं। वे बचपन में विभिन्न अवसरों के लिए इन्हे कविताएँ लिख कर देतीं और यह मंच पर सबके सामने सुनाते| इस तरह कवि बनने से पहले से ही कविताओं से नाता रहा |

अपनी पहली कविता इन्होंने विद्यालय की पत्रिका "प्रगति" के लिये कक्षा दसवीं में लिखी। इनके अनुसार काव्य प्रतिभा इन्हें अपनी माँ से विरासत मे मिली है। आपने कक्षा बारहवी के पश्चात इन्दौर की आई.पी.एस. एकेडेमी में रसायन अभियांत्रिकी मे प्रवेश लिया और अभी तृतीय वर्ष के छात्र हैं। कालेज के समारोहों मे अधिकांशत: सूत्रधार की भूमिका निभाने के कारण सिर्फ मंचीय कविताओं सीमित रह गये थे पर अब एक नयी दिशा मिली है|

सम्पर्क:-

225, शिवम अपार्टमेंट
धनवंतरी नगर, इंदौर।
दूरभाष :- 9926363028
ई-मेल :- vipul283@gmail.com

इनका वार - शनिवार


योगदानः-

"मेरी मधुशाला "

माँ

ठूँठ की वेदना

एक कल्पना

श्रीराम और केवट

करना पड़ता है !

स्वर्ग में समस्याये

सावन

बुधिया मरने वाली है !

त्रिवेणियों में मेरा प्रथम प्रयास,महज़ क्षणिकाये या कुछ ख़ास?

एक और बुधिया

छोटी सी बुधिया

बुधिया और भी हैं..

मैं मधुशाला हूँ

छत और मैं

मुर्गी भी माँ है !

बुधिया-भाग 6

तुम्हारा क्या दोष!

कोई मिल गया है..

आठ क्षणिकायें

चाँद-भाग १

क्षणिकायें

बुधिया भाग ७

चाँद-भाग २

अब समझा हूँ तुम्हें..

होली की शुभकामनायें

भारत महान है..

ग़ज़ल

बुधिया-भाग ८

चाँद ३

बुधिया ९

एक उदास कविता

पिता दिवस पर पितरों के नाम एक कविता

हिन्दी

क्षणिकाएँ

आख़िर क्यों होते हैं ये धमाके!

कमाल है !

लडकियां

नीला आसमान

दर्द

अजय यादव

काव्य या यूँ कहें कि साहित्य से इनका लगाव बचपन से ही रहा। इनके पिता जी को हिन्दी काव्य में गहरी रूचि थी। अकसर उनसे कविताएँ सुनते-सुनते कब खुद भी साहित्य-प्रेमी बन गये, पता ही नहीं चला। घर में महाभारत, गीता आदि कुछ धार्मिक किताबें थीं, उनसे स्वाध्याय की जो शुरूआत हुई, वह वक़्त गुजरने के साथ-साथ शौक से ज़रूरत बन गयी। परन्तु अब तक पढ़ने का ये शौक सिर्फ पढ़ने तक ही सीमित रहा था, कभी स्वयं कुछ लिखने का प्रयास नहीं किये। कुछ समय पूर्व बज़रिये अंतरजाल शैलेश भारतवासी के संपर्क में आए तो पढ़ने के इस सिलसिले को एक नयी दिशा मिली। जिनके कहने पर पहली बार कुछ लिखने का प्रयास किये। हालाँकि अजय यादव के विचार में काव्य में कुछ कहने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, पाठक को स्वयं किसी विषय पर विचार करने के लिये प्रेरित करना और इस लिहाज से अभी ये खुद को कवि नहीं कह सकते। पर फ़िर भी मन में उठने वाले विचारों को काग़ज़ पर उतार देने का प्रयास करते हैं। यदि इनके इस प्रयास से किसी को एक पल की खुशी मिल सके, किसी को अपने दुख में सांत्वना मिल सके या किसी विषय विशेष की तरफ पल भर को ही सही पाठक का ध्यान आकर्षित हो सके तो ये अपने प्रयास को सार्थक समझेंगे।


इनका वार- शुक्रवार




संपर्क-

मकान न॰- ११६१

गली न॰- ५४

संजय कॉलोनी

एन॰आई॰टी॰ फरीदाबाद

हरियाणा (१२१००५)

ई-मेल- ajayyadavace@gmail.com




योगदानः-

बादल का घिरना देखा था

तीन चार रोज़ हुए

अब हमसे और अपने दिल को समझाया नहीं जाता

इंगितों के अर्थ

एक और कर्मवीर

मायूस हो गये

इन्सान ही बदल गया है

प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

निकला नभ में, भोर का तारा

आये बिना बहार की, रवानी चली गयी

मेरे शहर में बारिश

जग समझा वर्षा ऋतु आयी

कहाँ गये पक्षी

तेरे हुस्न के सदके में

आँखें तब आँसू भर लाती थीं

आदमी तो मिला नहीं

शाह बन नकल गया

गलत वो हो नहीं सकता

न खुदा को भी जिंस-ए-गिराँ कीजिए

तहज़ीब और इंसानियत जो बेच खाते हैं

प्यार की पहली किरन

हिंदी को अपनाइए (दो कुंडलियाँ)

मुसाफ़िर सा जीवन

पत्थरों के शहर में एक घर बनाकर देखिए

शब्द मेरे, बोल कह दूँ

डूबते सूरज को अक्सर बड़ी देर तक तकता है वो

सड़कें; सर्द रात में

बेनकाब होके जो घर से मैं बाहर निकला

दीपक मगर जलता रहा

रात भर जागती आँखों से सना था हमने

दर्द के घर में किया फिर से बसेरा हमने

फिर रात हुई

तो हर दिन यारों होली है

रजनी सखी मुस्कराने लगी

आलोक शंकर

जन्म बिहार के चम्पारण जिले के गाँव रामपुरवा में हुआ । बचपन गाँव और फ़िर पास के शहर मोतिहारी मेँ बीता । कविता की क्षमता पिताजी से विरासत मेँ मिली और घर में श्री दिनकर , श्री मैथिलीशरण गुप्त , श्री प्रसाद व अन्य प्रमुख रचनाकारों की सारी प्रमुख पुस्तकों की मौजूदगी इसके विकास का कारण बनी । सातवीँ कक्षा तक ये सारी पुस्तकें पढ़ डालीं थीं पर अभी तक कविता लिख सकते हैं इसका अनुमान नहीं था । फ़िर विकास विद्यालय राँची में आगे की शिक्षा हेतु आये । यहाँ गुरु श्री बुद्धिराम मिश्र जी छात्रों से कुछ न कुछ लिखने को प्रोत्साहित कर रहे थे तो इन्होंने भी कुछ लिखा और गुरुजी श्री गुप्त की रचना समझ प्रसन्न हो गये (उस कविता की कुछ पंक्तियाँ हिन्द-युग्म पर प्रकाशित कविता 'कश्मीर' में हैं)। जब असलियत पता लगी तो गुरुजी का प्रोत्साहन और आशीर्वाद दोनों मिला । तब से लिखना शुरु किया पर जीवन में कहीं स्थापित होने की जद्दोजहद में कलम छूट गयी ।अब जब नौकरी मिल गयी और हिन्द-युग्म जैसे मंच मिले तो लिखने की प्रेरणा मिली । कवि अभी अपने आप को नवागंतुक ही मानते हैं। कुछ कवितायें अनुभूति पर प्रकशित । आगे का सफ़र हिन्द-युग्म पर ही तय किया है। वर्तमान में कवि सिस्को-सिस्टम्स, बैंगलूरू में साफ़्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं।


इनका वार- शनिवार




संपर्क-सूत्र-




श्री वीरेन्द्र पाण्डेय


जे-२, माधव अपार्टमेन्ट्स


हीरापुर, धनबाद (झारखण्ड)





योगदान-


एक कहानी

निठारी पर-

संक्षिप्त भाव -- निठारी पर

ख्वाहिश

कश्मीर

दोष बस मेरा नहीं है ।

मैं ,चाँद !

बचपन और जीवन

अपने -अपने खण्डहर

आँख है यदि नम हमारी

मैं तुम्हारा मृदु चितेरा

धरती और आसमान

हिन्द युग्म

क्षमा और वीरता

प्रतिध्वनि

प्रेम का पर्याय जीवन

पंख पसारो

बाढ़

बचपन

क्षणिकायें

स्वप्न का निमंत्रण

देश

रावण के बाद

किस भाँति तुम्हें पुजूँ प्रस्तर

बाबूजी

औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये

सदियों से

क्षणिकाएं

स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं

एक आदमी था

प्रमेन्द्र प्रताप सिंह

जन्म उत्तर भारत का मैनचेस्‍टर कहे जाने वाले महानगर कानपुर मे 24-नवम्बर-1986 को हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा कानपुर मे हुई। पिता के विधि व्यवसाय मे होने के कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय मे प्रैक्टिस हेतु आना हुआ इसी के साथ 1993 मे प्रयाग की पावन धरती मे रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तब से प्रयागराज मे ही निवास एवं शिक्षा ग्रहण कर रहे है। वर्ष 2005 मे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। वर्तमान में उत्तरप्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय से परास्नातक-अर्थशास्त्र की शिक्षा ग्रहण कर रहे है। लेखक/कवि का पैत्रिक जनपद प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मे हैं। लिखने का शौक प्रारम्भ से ही रहा है, प्रथम कविता 1994 मे लिखी, उसके बाद लेखों तक ही सीमित रह गये। दूसरी कविता 2001 मे हाई स्कूल की परीक्षा के दौरान लिखी और तब से निरन्तर काव्य रच रहें है। वर्तमान समय मे “हिन्द-युग्म” के अतिरिक्त लेख तथा कविताएँ क्रमश: महाशक्ति तथा महाशक्ति कविता संग्रह पर लिख रहे हैं।

इनका वार- गुरुवार

सम्‍पर्क सूत्र :-

ईमेल
pramendraps at gmail dot com


योगदान -



मोहिन्दर कुमार

जन्म: 14 मार्च, 1956
स्थान: पालमपुर, हिमाचल प्रदेश
शिक्षा: प्राइमरी शिक्षा - सेंट पालज हाई स्कूल, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश
माध्यमिक शिक्षा - गोवर्नमेंट हाई स्कूल, इन्ड्रूजगंज, नई दिल्ली
स्नातक - बी. एस . सी. - 1978, गुरु गोविन्द सिहं खालसा कालेज, नोर्थ दिल्ली केम्पस , दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली.
स्नातकोतर - एम. ए . (पब्लिक एडमिन्सट्रेशन) , राजस्थान यूनिवर्सिटी.
रुचि: पुस्तकें बचपन से प्रिय रही हैं. कुछ मन पसन्द पुस्तकों की सूची निम्न है:
प्रतिज्ञा, कफ़न, गौदान, गबन, मानसरोवर नमक का दरोगा, निर्मला - मुन्शी प्रेम चन्द, चन्द्रकान्ता सन्तति - बाबू देवकी नंदन खत्री, मृणालिनी, आनंद मठ - बंकिम चन्द्र चैटर्जी, अनटचेबल - मुल्कराज आनन्द, अतीत के चलचित्र , पथ के साथी, संकल्पिता, हिमालय, सांध्यगीत - महादेवी वर्मा, ट्रेन टू पाकिस्तान - खुशवन्त सिंह, हिमालयन वलन्डर - कर्नल जे पी देहलवी, हू मूव्ड माई चीज - जोनाथन स्पेनसर, और भी बहुत सी जिनके नाम ये अक्सर भूल जाते हैं।
संगीत - भारतीय शास्त्रीय व हल्का संगीत
ग़ज़लें - मेंहदी हसन, मुन्नी बेगम, गुलाम अली, जगजीत सिंह चित्रा सिंह, पिनाज मसानी, पंकज उधास
पुराने हिन्दी फ़िल्मी गाने - मुहम्मद रफ़ी, मुकेश कुमार, किशोर कुमार, मन्नाडे, तलत महमूद, लता मंगेश्कर, आशा भोंसले.
सेवारतः दिसम्बर 1978 - जुलाई 1979 - कृषि मंत्रालय
जुलाई 1979 - नवम्बर 1982 - वित्त मंत्रालय
डारेक्टरोरेट आफ़ इन्टेलिजैन्स (डी.आर .आई)
नवम्बर 1982 के बाद - (निजी सचिव / उप प्रबन्धक)
इन्डियन आयल कार्पोरेशन लिमिटेड, कार्पोरेट आफ़िस, नई दिल्ली .
हिन्द- युग्म के अतिरिक्त कवि मोहिन्दर यहाँ भी लिखते हैं-
http://dilkadarpan.blogspot.com
http://mohinder56.blogspot.com/

हिन्द-युग्म पर इनका वार- मंगलवार


सम्पर्क-
ई-मेल- mohinder56 at gmail.com
9899205557


योगदान-


केवल संज्ञान है

यादों की तितलियां

दोषी कौन

लम्पट मन

संस्कृति पलायन

जीवन नाम है परिवर्तन का

देशनिकाला

किस से करें उम्मीद

ग़ज़ल

अब नहीं कोई सवाल, अब जबाब चाहिए

तो कोई बात नहीं

अम्बा का संताप

अंदाज़ लगाना मुश्किल है

कहीं ऐसा न हो जाये

बिँधे हुए पंख

ज़िंदगी चले जाने के सिवा क्या है

प्रतीक्षा

दुविधा

टंकार

हास्य से व्यंग्य तक- रोटी और इंकलाब

तुम अकेले नहीं

प्रीत की रीत

गठबंधन आशाओं से

मै क्या क्या न भूल चुका

मिथ्याबोध

दर्द सजीले

इसके सिवा क्या है

बंजारे

ग़ज़ल

कोई मेरे साथ तो है

ख्वाब एक जज़बात का

कद

दूर से हर मँजर दिलकश

कागज की नाव

अहसास

बाबुल बिटको

ख्वाहिश

मुस्कराओ तो सही

कुछ दर्द मेरे अपने

पहली बार मिले हो मुझसे

कोयला आज भी हूं

घनत्व

अस्तित्व का बोध

कोमल बेल या मोंढ़ा

नव वर्ष मंगलमय हो

कोई नहीं है

क्यूं नहीं लेते

कसक

जज्वा-ए-दिल

हर पल इक नया सपना

मेरे किस्सों को किताब होने दो

हर पल इक नया सपना

इक बार मुड़ के देख ले

शबनम-ए-हयात

चांद की छुअन

सच का आइना

अधिकार किसका

तेरे आने से

जमीर एक आग

क्षणिकायें

एक दिन....

दौराने सफ़र

क्यों कोई हो




बाल-उद्यान पर इनका वार - रविवार



पंकज तिवारी

कवि पंकज तिवारी का जन्मस्थान श्रीकांत का पुरवा (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) है। कविता से प्रथम सम्बन्ध, इनके बाबा जी (दादा जी) के द्वारा इनसे तुलसीकृत 'रामचरित मानस' का पाठ करवाना से है। जब माध्यमिक कक्षाओं के अध्ययन के लिए फ़ैजाबाद आना हुआ, तो वहाँ के वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों (जैसे स्वतॅत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि) में फिल्मी धुनों पर राष्ट्रभक्ति गीत लिखने का अवसर प्राप्त हुआ।, परन्तु कविता को इन्होंने समीप से तब जाना, जब ये इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए इलाहाबाद आये। कुछ कवि सम्मेलनों में जाने का अवसर भी मिला। सन् २००१ में कवि मनीष वंदेमातरम् के सम्पर्क में आने के पश्चात जैसे इनकी अनुभूतियों को पंख मिल गया। हिन्दी-गजल के संकलन की एक पुस्तक 'गजल-ए-हिनदुस्तानी' इनको बहुत प्रिय रही, विशेषरूप से महाकवि गोपालदास नीरज की गजलें। सन् २००२ के अगस्त के महीने में, कवि ने राजकुमार गोएल तकनीकी एवम् प्रबंधन संस्थान, गाज़ियाबाद में प्रवेश ले लिया, जहाँ "रैगिंग" नामक रस्म के समय वरिष्ठ छात्रों ने इनकी अभिरूचि जाननी चाही, इन्होंने कविता लिखना-पढ़ना बता दिया। कवितावाचन की इनकी शैली इतनी सुन्दर है कि जो इक बार सुन लेता है, बार-बार सुनना चाहता है। "फ्रेशर फंक्शन" में आखिर इन्हें कुछ सुनाना ही था तो कलम उठायी और कुछ कविताएँ लिख ही डाली। खूब वाह-वाही बटोरा। तब से अब तक अनवरत लिख रहे हैं। वर्तमान में कवि पंकज TCS नामक सॉफ़्टवेयर कम्पनी में साँफ़्वेयर इंजीनियर हैं।

रचनाएँ-
मुख्य रूप से कवि पंकज तिवारी हिन्दी कविता/गजल लिखते हैं जिसका कोई प्रमाणित संकलन उपलब्ध नहीं है। (५० से अधिक कविताएँ)

संपर्क-सूत्र-
ई-मेल-
erpankajtiwari at gmail dot com

इनका वार- बुधवार



योगदान --


क्या लिखोगे

मेरा यार

ज़ुदाई का मज़ा होता है

तुमने कहा कि मुझे भूल जाओ

चंद शेर

गया और नया साल

ग़मज़दा क्यूँ है

ख्वाबों में कई बार

तुम्हारी मर्ज़ी

आज फूल उदास है

ख़याल रखना भूल जाते हैं

गोरी

क़त्ल मुझको करें

तुझे चलना है तू चलता चल

ऐ तथाकथित सर्वशक्तिमान

इंकलाब हो जाये

जी चाहता है

इश्क की हमसे बात न करना

आप ने हाथ.....

मेरी बीबी कैसी हो

दोषी दिल बेरहम है

आप क्या कीजिए?

हैं कुछ खाते पुराने भी

एक शरारत बचपन में

उन्हें पता तो चले

हर रस्म

जहाँ भी डाल दूँ डेरा

तुम्हारी यादें

ऐ मेरे हुज़ूर

मैं शर्त लगा सकता हूँ

नहीं तो जान चली जाती है

मैं तुझको क्या यार कहूँ

मेरे तिरंगे प्यारे

फूलों की अहमियत

'आवारागर्द' है

क्यों मैं तुमसे प्यार करता हूँ