भूपेन्द राघव

प्रकाशित कवितायें

  1. हो परी कोई या नदी कोई .....

  2. मनुहार पत्रिका ( सपरिवार )

  3. होनहार बिरवान

  4. अबोध-बोध प्रमोद

  5. फर्ज..

  6. मोबाइल भूकम्प

  7. भेड़चाल

  8. और कहूँ अब आगे क्या मैं..

  9. प्रतिज्ञा...

  10. समझदारी...

  11. होनहार पीढ़ी

  12. हाँ री सखी री
    बसंत आयो

  13. टेटू बनाम नागलोई...

  14. बॉल की बोली

  15. मार्च इन मार्च फ्रोम गंज टू गंज ( बीरगंज (नेपाल) हास्य कवि सम्मेलन)

  16. पहला एक्सपीरिएंस...

  17. हो संतुलित अपना पर्यावरण

  18. विडम्बना

  19. मेरा आसमां...

  20. माँ

  21. हँसिकाएं...

  22. प्रभु-पुकार (स्कोप)

  23. हे पित्र नमन हे पित्र नमन...

  24. भूत की कछरिया....

  25. लहर कहर - शमशान शहर...

  26. आखिर किस ठोर चलें ... ???

  27. आखिर कब तक.....

  28. तिरछी नज़र....

  29. समावरोह... ( बदल रही है मेरी दिल्ली)

  30. फिर गूँज उठी दिल्ली....

  31. मेरी ख्वाहिश

  32. शंखनाद...

  33. शिव-आराधना...



उत्तर प्रदेश राज्य के बुलन्दशहर जनपद के एक छोटे-से गाँव अटेरना में इनका जन्म हुआ। ग्रामीण परिवेश और उसकी मिट्टी में बढ़ते हुए, पेड़-पोधों के साथ-साथ पल्लवित होते हुए भूपेन्द्र राघव का बचपन से ही अपनी मातृ भाषा से विषेश लगाव रहा। स्कूल में सहपाठियों के साथ कवितायें/दोहा/चौपाई/हिन्दी की अंत्याक्षरी आदि सुनने-सुनाने में अत्यधिक रुचि लेते थे। विज्ञान के छात्र होने के बावजूद हिन्दी लेखन /सहित्य एवं कला के प्रति खास रुझान रहा। 12वीं कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते हिन्दी की बहुत सारी कवितायें/गजल/गीत लिखे परंतु कभी संजोकर नहीं रखा और वो सभी रचनायें गुम हो गयीं, कुछ हास्य कवितायें स्कूल/कालेज की वाषिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं, तत्पश्चात राघव ने दिल्ली आकर एक छोटे से संस्थान से कम्प्यूटर साफ्ट्वेयर का प्रशिक्षण ले जीविका निर्वाह में जुट गये, नौकरी के साथ-साथ कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं नेटवर्किंग में स्वयं दक्षता हासिल कर वर्तमान में एक निर्यात संस्थान में कम्प्यूटर हार्डवेयर साफ्टवेयर व नेटवर्क इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। यहीं पर ये अंतरजाल पर ब्लोग-जगत के सम्पर्क में आये और मन में एक अभिलाषा लिये फिर से कलम सम्भाल ली।

मात्र भाषा ही नहीं है, वरन मातृ भाषा मेरी,
पल्लवन इसका करूं मैं ये ही अभिलाषा मेरी ।
माँ सरस्वती की दुहिता और संस्कृत की सुता,
सरित सा प्रभाव और, लिए सागर की गम्भीरता ।
गूढ़ भी आसान भी और हिंद की पहिचान भी,
जन - जन कि जुबान और राष्ट्र का सम्मान भी ।
सिंधु की ये सभ्यता, भविष्य की आशा मेरी,
पल्लवन इसका करूं मैं ये ही अभिलाषा मेरी।
मात्र भाषा ही नही ..............
मनन मन मंथन करूं तो रत्न कोटिक गोद में ,
कोतुहल भय विषाद में प्रेम में प्रमोद में ।
विरह में वात्सल्य में शृंगार में और क्रोध में ,
करुण में परिहास में अनन्त जिज्ञासा मेरी ।
पल्लवन इसका करूं मैं ये ही अभिलाषा मेरी ,
मात्र भाषा ही नही ..............


सम्पर्क सूत्र
raghav.id@gmail.com

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