सजीव सारथी

संगीतबद्ध गीत

पहले एल्बम 'पहला सुर' से

  1. सुबह की ताज़गी

  2. वो नर्म सी

  3. एक झलक

  4. बात ये क्या है जो

  5. रूह की बेज़ारियों को

  6. सम्मोहन


दूसरे सत्र से

  1. संगीत दिलों का उत्सव है

  2. बढ़े चलों

  3. आवारादिल

  4. मैं नदी

  5. जीत के गीत

  6. ओ मुनिया

  7. डरना झुकना छोड़ दे

  8. ओ साहिबा

  9. तू रूबरू

  10. One Earth- हमारी एक सभ्यता


'इंडो-रशिया मैत्री गीत'

सभी गीतों को सुनें-





आवाज़-मंच के सम्पादक

सजीव सारथी का नाम इंटरनेट पर कलाकारों की जुगलबंदी करने के तौर पर भी लिया जाता है। हिन्द-युग्म के वर्चुएल-स्पेस में गीत-संगीत निर्माण की नई और अनूठी परम्परा की शुरूआत करने का श्रेय सजीव सारथी को जाता है। अक्टूबर 2007 में सजीव ने संगीतकार ऋषि एस के साथ मिलकर कविताओं को स्वरबद्ध करने की नींव डाली। सजीव के निर्देशन में ही हिन्द-युग्म ने 3 फरवरी 2008 को अपना पहला संगीतमय एल्बम 'पहला सुर' ज़ारी किया जिसमें 6 गीत सजीव सारथी द्वारा लिखित थे।

4 जुलाई 2008 से हिन्द-युग्म ने अपने 'आवाज़' मंच की विधिवत शुरूआत की, जिसका दायित्व सजीव सारथी को सौंपा गया। सजीव ने यह दायित्व बखूबी निभाया। 4 जुलाई से लेकर 31 दिसम्बर 2008 तक सजीव के नियंत्रण में प्रत्येक शुक्रवार एक गीत रीलिज किया गया, जिससे 60 से अधिक कलाकारों (गायकों, संगीतकारों और गीतकारों) को एक विश्वव्यापी मंच मिला। आवाज़ ने 'पॉडकास्ट कवि सम्मेलन', 'सुनो कहानी', 'ओल्ड इज़ गोल्ड', 'महफिल-ए-ग़ज़ल', 'ताज़ा सुर ताल', 'ऑनलाइन पुस्तक विमोचन', 'गीतकास्ट प्रतियोगिता' जैसे कई लोकप्रिय स्तम्भों की शुरूआत की। दूसरे सत्र के संगीतबद्ध गीतों को रीलिज करने की कड़ी में सजीव सारथी द्वारा 10 गीत लिखे गये। सजीव ने भारत में रूसी दूतावास के लिए 'भारत-रूस मित्रता' पर 'द्रुज़बा' गीत की रचना की।

जन्म हुआ २४ फरवरी १९७४ को दक्षिण भारत के एक छोटे से गाँव में। चार साल के थे जब दिल्ली आये, तब से यहीं हैं। बचपन से ही साहित्य , संगीत और सिनेमा , इनके जीवन के आधार रहे, वाणिज्य में सनातन किया ताकि कोई अच्छी नौकरी मिले वो मिली भी, पर मन हमेशा रचनात्मक कार्य-कलापों में ही लगा। स्कूल से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी शुरू हो चुकी थी, जो कॉलेज़ में पहुँच कर अपने चरम पर पहुँची।

मूलतः एक गीतकार हैं, जो कविताओं में अपने आपको तलाश करते हैं, कहानी-पटकथा-संवाद भी लिख लेते हैं, कुल सात लघु फ़िल्में और ३ फुल लेंथ फिल्मे लिख चुके हैं, जिनमें से मात्र दो लघु फिल्मों को ही बन कर प्रसारित होने का सौभाग्य मिल पाया है, एक संगीत समुदाय के सदस्य हैं, दो धारावाहिकों के लिए शीर्षक गीत लिखने के साथ साथ बतौर सह निर्देशक भी काम कर चुके हैं ..... और कोशिशें जारी है।

गीतकार कवियों को अधिक पढ़ते हैं, इसलिये जाहिर है कि गुलज़ार साब, जावेद अख़्तर, निदा फ़ाज़ली, नीरज, इंदीवर, मजरूह, रविंद्र जैन सभी धड़कनें हैं इनकी, यूँ तो थोड़ा-थोड़ा निराला, नागार्जुन, बशीर बद्र, मीर, ग़ालिब सभी को पढ़ा है। शैलेंद्र इनके अतिप्रिय हैं जिनकी इन दो पक्तियों में इनके अनुसार इनके जीवन का सार है-

" आबाद नहीं बरबाद सही, गाता हूँ ख़ुशी के गीत मगर,
जख्मों से भरा सीना है मेरा , हँसती है मगर ये मस्त नज़र "

संपर्क-
७७७, सेक्टर ६
आर के पुरम, नई दिल्ली-११००२२
sajeevsarathie@gmail.com
09871123997

मुलाक़ात
हिन्द-युग्म के 'पहला सुर' की सफलता के बाद सजीव सारथी का साक्षात्कार एआईआर एम-रैनबों और सामुदायिक रेडियो डीयू-एमएम पर प्रसारित किया गया। सजीव सारथी के साथ बातचीत नीचे के प्लेयर से सुनें।