इनका जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में 29 फ़रवरी 1988 को हुआ। पिता अनिल भाई पंडया कृषि उपज मंडी में कार्यरत थे तथा माँ माधुरी बेन पंडया निहायत आध्यात्मिक गुजराती घरेलू महिला थीं। परिवारिक पृष्ठभूमि का दूर से भी साहित्य से कोई संबंध नहीं था, परंतु प्रोत्साहन सदैव मिला। पिता कहते थे-" हमेशा टशण में रहो पर इसके लिए तुम्हें यह पता होना ज़रूरी है कि तुम अपनी काबिलियत का यूज़ कैसे करते हो...इसके बिना तुमने अकड़ दिखाई तो मूर्ख कहलाओगे और यहाँ सभी में काबिलियत है, सो सबका सम्मान करो पर तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम स्पेशल हो"। पीयूष कहते हैं- "मेरा परिवार अवस्थी परिवार (तारे ज़मीन पर) की तरह ही था। कला का पुट मुझमें माँ ने ही डाला और सच कहूँ तो कक्षा 7 तक मेरे जूते मुझे माँ ही पहनाया करती थीं। पिता का स्थानांतरण होता रहता था सो घूमने को बहुत मिला। गाँवों को, आदिवासियों को महसूस किया है। फिर आए होशंगाबाद यानी की नर्मदापुरम, नर्मदा की नगरी। 6 से 12 वी तक यहीं रहा। अनिला मैम और गुरु मैम से काफ़ी प्रोत्साहन मिला, अत: आभारी हूँ। इसके पश्चात महाविद्यालय में संपादक बनना बड़ी उपलब्धि थी। अब तक स्वयं के लिए लिखने वाला क्षेत्र व्यापक हो रहा था, और अब पीछे नहीं देखना था पीछे था"
फिलहाल मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल में वास्तुकला अभियांत्रिकी के पंचम वर्ष के छात्र हैं। ग्राफिक्स डिजाइनिंग का बीज इनमें यहीं से पड़ा जब ये महाविद्यालय की पत्रिका 'एक्सेलसियर' की संपादकीय टीम में सम्मिलित हुए। पत्रिका के लिए तो वैसे हिन्दी-संपादक के तौर पर चयन हुआ था, लेकिन वहाँ इन्होंने ग्राफिक्स डिज़ाइनिंग का भी हुनर दिखाया।
शुरू में ये हिन्द-युग्म से भी कवि के रूप में ही जुड़े थे, लेकिन जल्द ही इन्होंने हिन्द-युग्म के ग्राफिक्स डिजाइनिंग का काम शुरू कर दिया। अगस्त 2007 से ये हिन्द-युग्म की ग्राफिक्स डिजाइनिंग का हिस्सा सम्हाले हुए हैं।