इनका जन्म बिहार के सोनपुर जिसे हरिहरक्षेत्र भी कह्ते हैं, में २२ अक्टूबर १९८४ को हुआ था। बचपन से ही हिंदी कविताओं में इनकी रूचि थी । जब उच्च विद्यालय में इनका दाखिला हुआ, तो अपने परम मित्र मनीष सिंह के साथ मिलकर कवितायें रचने का इन्होंने विचार किया । इस तरह आठवीं कक्षा से इन्होंने लेखन प्रारंभ कर दिया । इनके परम मित्र ने बाद में लेखन से सन्यास ले लिया । परंतु इनका लेखन अबाध गति से चलता रहा । इन्होंने अपनी कविताओं और अपनी कला को बारहवीं कक्षा तक गोपनीय ही रखा । तत्पश्चात मित्रों के सहयोग के कारण अपने क्षेत्र में ये कवि के रूप में जाने गये । बारहवीं के बाद इनका नामांकन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के संगणक विज्ञान शाखा में हो गया । कुछ दिनों तक इनकी लेखनी मौन रही,परंतु अंतरजाल पर कुछ सुधि पाठकगण और कुछ प्रेरणास्रोत मित्रों को पाकर वह फिर चल पड़ी । ये अभी भी क्रियाशील है। इनकी सबसे बड़ी खामी यह रही है कि इन्होंने अभी तक अपनी कविताओं को प्रकाशित होने के लिये कहीं भी प्रेषित नहीं किया।
हिन्द-युग्मपर इनका वार- रविवार
योगदान-
याद
मंथरा उवाच
पथिक
करवाचौथ
मैंने देखा है
संवेदना
ख्याल
हुंकार
आरक्षण
विद्यार्थी
आओ जेहादियों
यह जग-दोजख
तेरे पग के नुपूर
ओ मेरे संशय
सुन मछुआरे
कब तक
फसल एवं क्षणिकाएँ
वाचाल मौन
चाँद और धब्बा (कुछ क्षणिकाएँ )
कुछ क्षणिकाएँ
माता-पिता और मातृभूमि
आज के जांबाज
बारह त्रिवेणियाँ
मैं खुद मेरा सवेरा
अनंग-सी वो कांता
मेरे बिहार में
सात क्षणिकाएँ
मैं अकर्मण्य हूँ!
रात की चाशनी
मंजिल
बासी-बासी मन
मैं और तुम ( तीन कविताएँ)
कुछ पल
कुछ त्रिवेणिया
हबीब: एक गज़ल
पथभ्रष्ट: एक गज़ल
आज के युवा
दो विधा एक साथ
वैलेंटाइन डे पर विशेष
कुछ भाव कुछ शब्द
मोहनजोदड़ो
सरहद
इंसान
किस लिये...एक गज़ल
मैं और मेरा रहबर...एक गज़ल
कभी यूँ भी
केंचुल छोड़ता साँप
शिकवा
दर्द
गुठली
प्रश्न आदिकवि से
आज़ाद हिंद
बेसबब
आज की आवाज़
ऐ जिंदगी
यम आना इत्मीनान से
कुछ अनसुलझे ख़्याल
आज मन कर आचमन!
राम! किस किनारे तुम्हारी ध्वजा डालूँ?
चवन्नी मुस्कान
माँ तो माँ है.....गीत भी , कविता भी
वह कुछ बहकी-बहकी-सी बातें करती है!
माफ़ीनामा
आखिरी रहनुमा
देवता तक आज आते हीं नहीं...
ये तेरे इशारे..
तेरी बेसबब हँसी
लिच्छवि की एक छवि लेकर..
साढे साती
तो बड़ा शायर हूँ..
सो ना हीं लूँ तो है सही..
याद
मंथरा उवाच
पथिक
करवाचौथ
मैंने देखा है
संवेदना
ख्याल
हुंकार
आरक्षण
विद्यार्थी
आओ जेहादियों
यह जग-दोजख
तेरे पग के नुपूर
ओ मेरे संशय
सुन मछुआरे
कब तक
फसल एवं क्षणिकाएँ
वाचाल मौन
चाँद और धब्बा (कुछ क्षणिकाएँ )
कुछ क्षणिकाएँ
माता-पिता और मातृभूमि
आज के जांबाज
बारह त्रिवेणियाँ
मैं खुद मेरा सवेरा
अनंग-सी वो कांता
मेरे बिहार में
सात क्षणिकाएँ
मैं अकर्मण्य हूँ!
रात की चाशनी
मंजिल
बासी-बासी मन
मैं और तुम ( तीन कविताएँ)
कुछ पल
कुछ त्रिवेणिया
हबीब: एक गज़ल
पथभ्रष्ट: एक गज़ल
आज के युवा
दो विधा एक साथ
वैलेंटाइन डे पर विशेष
कुछ भाव कुछ शब्द
मोहनजोदड़ो
सरहद
इंसान
किस लिये...एक गज़ल
मैं और मेरा रहबर...एक गज़ल
कभी यूँ भी
केंचुल छोड़ता साँप
शिकवा
दर्द
गुठली
प्रश्न आदिकवि से
आज़ाद हिंद
बेसबब
आज की आवाज़
ऐ जिंदगी
यम आना इत्मीनान से
कुछ अनसुलझे ख़्याल
आज मन कर आचमन!
राम! किस किनारे तुम्हारी ध्वजा डालूँ?
चवन्नी मुस्कान
माँ तो माँ है.....गीत भी , कविता भी
वह कुछ बहकी-बहकी-सी बातें करती है!
माफ़ीनामा
आखिरी रहनुमा
देवता तक आज आते हीं नहीं...
ये तेरे इशारे..
तेरी बेसबब हँसी
लिच्छवि की एक छवि लेकर..
साढे साती
तो बड़ा शायर हूँ..
सो ना हीं लूँ तो है सही..