प्रकाशित ग़ज़लें
इनका परिचय इन्हीं की ज़ुबानी- बम जैसा मुस्तक़बिल है (आतिथ्य कविता)
- जिस्म कमाने निकल गया है (आतिथ्य कविता)
- शायद कोई मोटी मछली फ़ोन करे (आतिथ्य कविता)
- अंकल जैसे लोग
- क्या ज़रूरी है कि सबसे ज्ञान लें
- अपने जानिस्तान में कैसे रहें
- तू बेयक़ीन है, मत जा शराबख़ाने में
- इस दुनिया को काट के कितनी दुनियाएँ बनती हैं
- हर तरफ़ हो गई भिखारी रात
- सिलसिला जारी है...
- मेरी सारी चाय ठंडी हो गई...
- तुम्हें हो ईद मुबारक
शायद दुनिया का सबसे मुश्किल काम है अपना परिचय देना। काश सब यही कहते कि " बुल्ला कि जाणा मैं कोन?"। मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली, ऊंचाहार में हुआ। घर की तरबियत में शराफ़त भी थी, इल्म भी था, और शायरी भी। बीए इलाहाबाद से किया और सच मानिये तो शायरी का चस्का इसी शहर ने लगाया। अपने क़स्बे के नाम पर नाज़िम मुस्तफ़ाबादी के तख़ल्लुस से लिखना शुरू किया। शुरू शुरू में मुशायरे और कवि सम्मेलनों में जाने की बड़ी फ़िक्र रहती थी। शायद कुछ पैसे और वाह-वाह की भूख इसकी वजह रही हो। लेकिन वो माहौल (शुक्र है) अपनी तबीयत को रास नहीं आया। कभी कोई ऐसी पढ़ाई या इम्तेहान नहीं दिया जो नौकरी मिलने की आस जगाता हो। पत्रकार बनने का सपना कभी नहीं टूटा, घरवालों की नाराज़गी के बावजूद भी नहीं। छोटे से साप्ताहिक समाचार-पत्र इलाहाबाद केशरी के संपादन से जेब ख़र्च की कमी को पूरा किया। अपने क़स्बे से एक शाम का दैनिक समाचार " ऊंचाहार मेल" की शुरूआत की जो सिर्फ़ 45 अंक के बाद बंद करना पड़ा, पैसे ख़त्म हो गये थे।
दिल्ली आया और विनोद दुआ की शरण में जगह मिल गई, स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर। बस तब से लेकर आजतक, पिछली एक दहाई से इसी टीवी और फ़िल्मों की दुनिया में कुछ सार्थक कर पाने की जुगत में हूं। क्या-क्या किया ये बताना ठीक नहीं, लगेगा नौकरी के लिये बायो-डाटा लिख रहा हूं।
1.हिन्द-युग्म के तीसरे अतिथि कवि
2.हिन्द-युग्म पर कविता लेखन-संपादन, आलेख लिखने (बैठक तथा आवाज़ पर) तथा हिन्द-युग्म की जमीनी आयोजनों में सक्रिय
प्रकाशित आलेख (बैठक पर)
- बीजेपी : कॉट संघ बोल्ड जिन्ना
- पत्रकारिता में गांव या गांव की पत्रकारिता...
- देव का पाकिस्तान
- लोकतंत्र से ज़्यादा अहम आईपीएल ???
- वक़्त का तक़ाज़ा भी यही है....
- यक़ीन पर कैसे यक़ीन करें...
- एक जनवरी ऐसी भी....
- क्या ये पहली बार हुआ है?