गौरव सोलंकी

प्रकाशित कवितायें

  1. मुझे आज़ाद होना है

  2. चलो कुछ बात करें...

  3. मैं अकेला ही रहा

  4. भगवान...तुम्हारे लिए

  5. मुझसे दूर

  6. अधम धर्म

  7. मुश्किल लगता है

  8. विडम्बनाएँ

  9. एक पागल दूजे से बोला

  10. मेरा युग

  11. मुझको भी खबर है

  12. मैंने प्रेम नहीं माँगा प्रिये

  13. डर

  14. पिता से

  15. पता है चन्दू

  16. क्षणिकाएं

  17. खुदा के जी में जाने क्या है

  18. कुछ क्षणिकाएँ

  19. लड़कियाँ

  20. एकांत की ख़वाहिशें

  21. निश्चय

  22. तेरह क्षणिकाएँ

  23. बारह क्षणिकाएँ

  24. तुम ज़िन्दा हो

  25. प्यास में थीं मुक्तियाँ

  26. ग्यारह क्षणिकाएँ

  27. तेरी याद: कुछ क्षण

  28. चलो भारत को बंटवाएँ

  29. मैं बिक गया हूँ

  30. मेरे सीने में क्या है...

  31. जुनून

  32. मेरे मरने के बाद

  33. बाज़ार जा रही हो तो...

  34. रात और दर्द

  35. अम्मा, वो चाहिए मुझे

  36. बदजात परिन्दे हम

  37. सींखचों का समाज

  38. क्षणिकाएँ

  39. बेशर्म सन्नाटा

  40. एकतरफ़ा मोहब्बत

  41. चाँद और
    क्षणिकायें

  42. माँएं नहीं मरती

  43. प्यार नहीं करने वाली लड़कियाँ

  44. आसमान फिर भी नहीं गिरता

  45. तेरी वो सहेली
    कहती है

  46. स्टेशन पर

  47. हैं सब खफ़ा खफ़ा

  48. हमारा एक बाग था

  49. माँ : ग्यारह क्षणिकाएँ

  50. सबसे खराब
    कविता

  51. और उन लड़कियों से किया इश्क़ हमने

  52. माँ के लिए कुछ क्षणिकाएँ और अपने लिए अपराधबोध

  53. तुरही क्या होता है पापा?

  54. मार डालूं तुम्हें

  55. इससे पहले कि शराब पीना खो दे अपनी अश्लीलता

  56. बीच सड़क पर दहाड़ें मार-मारकर रोने की प्यारी इच्छा के लिए

  57. आँख में धूप है

  58. अब, आस्था, लड़कियाँ और पहला चुम्बन

  59. हेमंत करकरे नाम का एक आदमी मर गया था

  60. बीच के लोग रहेंगे देर तक ज़िन्दा

  61. जिन आदमियों का छूटा हुआ है बहुत सारा विलाप


इनका जन्म 7 जुलाई, 1986 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के 'जिवाना गुलियान' गाँव में हुआ। माता-पिता संगरिया (राजस्थान) में अध्यापक हैं, अत: शिक्षा-दीक्षा संगरिया में ही हुई। इंजीनियर बनने की लगन के साथ-साथ साहित्य का शौक चलता रहा और एक नन्हा सा कवि बचपन से ही भीतर पलता रहा। एक दिन हाथों ने लेखनी को थाम ही लिया और लेखन शुरू हो गया। 15 वर्ष की आयु में काव्य-लेखन आरंभ किया। कवि के अनुसार वे अधिक संवेदनशील हैं, इसलिये आसपास जो कुछ भी छोटा-बड़ा दिखता रहा, वे उसे कागज पर उकेरने लगे।


आई.आई.टी. रुड़की में प्रवेश के बाद शौक अधिक गति से बढने लगा और कवि के शब्दों में अब वे अधिक 'परिपक्व' कविताएँ लिखने लगे है। साहित्य पढते समय रुचि अब भी गद्य में ही रही और एक कहानीकार भी भीतर करवट लेने लगा। कहानियाँ लिखनी शुरू की और फिर उपन्यास भी। अभी ये आई.आई.टी. रुड़की में चतुर्थ वर्ष के छात्र हैं। अब अभियांत्रिकी छोड़कर सृजनकार बनने का मन होने लगा है और मानव मन के ऐसे ही सपनों पर, जिन्हें यह सोचकर छोड दिया जाता है कि इनका तो पूरा होना असंभव है, इन्होंने अपना पहला उपन्यास हाल ही में पूरा किया है।



हिन्द-युग्म पर इनका वार- गुरुवार


संपर्क-

पुत्र श्री युवराज सोलंकी (वरिष्ठ अध्यापक)
वार्ड नं.-21
गुरूनानक बस्ती
संगरिया
जिला-हनुमानगढ़ (राजस्थान)
पिन कोड-335063


ई-मेल- aaawarapan at gmail dot com

कहानी-कलश पर इनकी तिथि- ११वीं