जन्म बिहार के चम्पारण जिले के गाँव रामपुरवा में हुआ । बचपन गाँव और फ़िर पास के शहर मोतिहारी मेँ बीता । कविता की क्षमता पिताजी से विरासत मेँ मिली और घर में श्री दिनकर , श्री मैथिलीशरण गुप्त , श्री प्रसाद व अन्य प्रमुख रचनाकारों की सारी प्रमुख पुस्तकों की मौजूदगी इसके विकास का कारण बनी । सातवीँ कक्षा तक ये सारी पुस्तकें पढ़ डालीं थीं पर अभी तक कविता लिख सकते हैं इसका अनुमान नहीं था । फ़िर विकास विद्यालय राँची में आगे की शिक्षा हेतु आये । यहाँ गुरु श्री बुद्धिराम मिश्र जी छात्रों से कुछ न कुछ लिखने को प्रोत्साहित कर रहे थे तो इन्होंने भी कुछ लिखा और गुरुजी श्री गुप्त की रचना समझ प्रसन्न हो गये (उस कविता की कुछ पंक्तियाँ हिन्द-युग्म पर प्रकाशित कविता 'कश्मीर' में हैं)। जब असलियत पता लगी तो गुरुजी का प्रोत्साहन और आशीर्वाद दोनों मिला । तब से लिखना शुरु किया पर जीवन में कहीं स्थापित होने की जद्दोजहद में कलम छूट गयी ।अब जब नौकरी मिल गयी और हिन्द-युग्म जैसे मंच मिले तो लिखने की प्रेरणा मिली । कवि अभी अपने आप को नवागंतुक ही मानते हैं। कुछ कवितायें अनुभूति पर प्रकशित । आगे का सफ़र हिन्द-युग्म पर ही तय किया है। वर्तमान में कवि सिस्को-सिस्टम्स, बैंगलूरू में साफ़्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं।इनका वार- शनिवार
संपर्क-सूत्र-
श्री वीरेन्द्र पाण्डेय
जे-२, माधव अपार्टमेन्ट्स
हीरापुर, धनबाद (झारखण्ड)
योगदान-
एक कहानी
निठारी पर-
संक्षिप्त भाव -- निठारी पर
ख्वाहिश
कश्मीर
दोष बस मेरा नहीं है ।
मैं ,चाँद !
बचपन और जीवन
अपने -अपने खण्डहर
आँख है यदि नम हमारी
मैं तुम्हारा मृदु चितेरा
धरती और आसमान
हिन्द युग्म
क्षमा और वीरता
प्रतिध्वनि
प्रेम का पर्याय जीवन
पंख पसारो
बाढ़
बचपन
क्षणिकायें
स्वप्न का निमंत्रण
देश
रावण के बाद
किस भाँति तुम्हें पुजूँ प्रस्तर
बाबूजी
औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये
सदियों से
क्षणिकाएं
स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
एक आदमी था
एक कहानी
निठारी पर-
संक्षिप्त भाव -- निठारी पर
ख्वाहिश
कश्मीर
दोष बस मेरा नहीं है ।
मैं ,चाँद !
बचपन और जीवन
अपने -अपने खण्डहर
आँख है यदि नम हमारी
मैं तुम्हारा मृदु चितेरा
धरती और आसमान
हिन्द युग्म
क्षमा और वीरता
प्रतिध्वनि
प्रेम का पर्याय जीवन
पंख पसारो
बाढ़
बचपन
क्षणिकायें
स्वप्न का निमंत्रण
देश
रावण के बाद
किस भाँति तुम्हें पुजूँ प्रस्तर
बाबूजी
औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये
सदियों से
क्षणिकाएं
स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
एक आदमी था
