इनका वार- शुक्रवार
संपर्क-
मकान न॰- ११६१
गली न॰- ५४
संजय कॉलोनी
एन॰आई॰टी॰ फरीदाबाद
हरियाणा (१२१००५)
ई-मेल- ajayyadavace@gmail.com
योगदानः-
बादल का घिरना देखा था
तीन चार रोज़ हुए
अब हमसे और अपने दिल को समझाया नहीं जाता
इंगितों के अर्थ
एक और कर्मवीर
मायूस हो गये
इन्सान ही बदल गया है
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी
निकला नभ में, भोर का तारा
आये बिना बहार की, रवानी चली गयी
मेरे शहर में बारिश
जग समझा वर्षा ऋतु आयी
कहाँ गये पक्षी
तेरे हुस्न के सदके में
आँखें तब आँसू भर लाती थीं
आदमी तो मिला नहीं
शाह बन नकल गया
गलत वो हो नहीं सकता
न खुदा को भी जिंस-ए-गिराँ कीजिए
तहज़ीब और इंसानियत जो बेच खाते हैं
प्यार की पहली किरन
हिंदी को अपनाइए (दो कुंडलियाँ)
मुसाफ़िर सा जीवन
पत्थरों के शहर में एक घर बनाकर देखिए
शब्द मेरे, बोल कह दूँ
डूबते सूरज को अक्सर बड़ी देर तक तकता है वो
सड़कें; सर्द रात में
बेनकाब होके जो घर से मैं बाहर निकला
दीपक मगर जलता रहा
रात भर जागती आँखों से सना था हमने
दर्द के घर में किया फिर से बसेरा हमने
फिर रात हुई
तो हर दिन यारों होली है
रजनी सखी मुस्कराने लगी
बादल का घिरना देखा था
तीन चार रोज़ हुए
अब हमसे और अपने दिल को समझाया नहीं जाता
इंगितों के अर्थ
एक और कर्मवीर
मायूस हो गये
इन्सान ही बदल गया है
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी
निकला नभ में, भोर का तारा
आये बिना बहार की, रवानी चली गयी
मेरे शहर में बारिश
जग समझा वर्षा ऋतु आयी
कहाँ गये पक्षी
तेरे हुस्न के सदके में
आँखें तब आँसू भर लाती थीं
आदमी तो मिला नहीं
शाह बन नकल गया
गलत वो हो नहीं सकता
न खुदा को भी जिंस-ए-गिराँ कीजिए
तहज़ीब और इंसानियत जो बेच खाते हैं
प्यार की पहली किरन
हिंदी को अपनाइए (दो कुंडलियाँ)
मुसाफ़िर सा जीवन
पत्थरों के शहर में एक घर बनाकर देखिए
शब्द मेरे, बोल कह दूँ
डूबते सूरज को अक्सर बड़ी देर तक तकता है वो
सड़कें; सर्द रात में
बेनकाब होके जो घर से मैं बाहर निकला
दीपक मगर जलता रहा
रात भर जागती आँखों से सना था हमने
दर्द के घर में किया फिर से बसेरा हमने
फिर रात हुई
तो हर दिन यारों होली है
रजनी सखी मुस्कराने लगी