फ़रवरी 1982 में बिहार राज्य के सिवान जिले में जन्म। हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान विरासत में मिला (साहित्यानुरागी परिवार एवं पिता संस्कृत शिक्षक) । एक ओर बाहर की खोज ने विज्ञान की तरफ़ प्रेरित किया तो दूसरी ओर अंतर की खोज ने कपिल, कणाद, शंकर से लेकर आचार्य रजनीश 'ओशो' तक की यात्राएँ की। साक्षीभाव ने जीवन को शांति दी। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में पूरी करने के बाद पटना आ गये, जहाँ से इण्टरमीडीएट एवं बी.एस.सी (ए. एन. कालेज,पटना) उत्तीर्ण किया। जे. एन यु. द्वारा आयोजित अखिल भारतीय प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के तहत हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में दाखिला (एम. एस. सी, बायोटेक्नोलाजी 2004-2006) | एम. एस. सी के साथ-साथ सी. एस. आई. आर. नेट तथा गेट परीक्षाएँ उत्तीर्ण की और फ़िर शोध कार्य के लिए आई. आई. टी कानपुर में दाखिला लिया जहाँ कैंसर जीनोमिक्स (ड्रोसोफिला माडल) पर काम कर रहे हैं। बाल्यकाल से ही साहित्य में रुचि। हालांकि तब से अब से अब तक पढ़ने और लिख्नने के विषय बदलते रहे। अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। कवि जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-
"छोटे से अपने जीवन की क्या बड़ी कथाएँ आज कहूँ
क्या ये अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ"
संपर्क-रविकांत पाण्डेय
द्वारा प्रो॰ प्रदीप सिन्हा
लैब नं॰ ८
बी॰एस॰बी॰ई॰ विभाग
आई आई टी कानपुर
कानपुर- २०८०१६ (यूपी)
हिन्द-युग्म पर इनका वार- शनिवार
निवेदन
इक पहेली से नहीं कम …