हाईस्कूल की परीक्षा पास के कस्बे बरवर से करने के उपरान्त कालेज की पढायी हेतु काकोरी के अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मल' के नगर शाहजहांपुर आ गये। आपात स्थिति के दिनों में लोकनायक जयप्रकाश के आह्वान पर छात्र आंदोलन में सक्रिय कार्य करते हुये अध्ययन में भारी व्यवधान हुआ। तत्पशचात बी एस सी अंतिम बर्ष की परीक्षा बीच में छोड वायुसेना में शामिल होकर विद्दयुत इंजीनीयरिंग में डिप्लोमा किया।
कैमरा और कलम से बचपन का साथ निभाते हुये मल्टीमीडिया एनीमेशन, विडियो एडिटिग में विशेषज्ञता और 1997 से 2003 तक नागपुर रहते हुये कम्प्यूटर एप्लीकेशन में स्नातक (बी सी ए) शिक्षा प्राप्त की।
1993 में कीव (यूक्रेन) में लम्बे प्रवास के दौरान पूर्व सोवियत सभ्यता संस्कृति के साथ निकट संपर्क का अवसर मिला। तदुपरान्त अन्य अवसरों पर ओमान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान तथा भूटान की यात्रा से वैश्विक विचारों में संपुष्टता हुयी।
वायुसेना में रहते हुये असम के जोरहाट से गुजरात में जामनगर दक्षिण में बंगलौर से लेकर नागपुर, कानपुर, आगरा, चण्डीगढ सहित सारे भारत में लम्बे प्रवास से सम्पूर्ण भारतीय होने का गौरव। विभिन्न समाचार पत्रों, कादम्बिनी तथा साप्ताहिक पांचजन्य में कविता लेख एवं कहानी का प्रकाशन। वायुसेना की विभागीय पत्रिकाओं में लेख निबन्ध के प्रकाशन के साथ कई बार सम्पादकीय दायित्व का निर्वहन। विभाग में कम्प्यूटर शिक्षा एवं राजभाषा प्रोत्साहन कार्यक्रमों में सक्रिय योगदान।
संप्रति : चण्डीगढ वायुसेना मे सूचना प्रोद्यौगिकी अनुभाग में वारण्ट अफसर के पद पर कार्यरत।
हिन्द-युग्म पर इनका वार- मंगलवार
योगदान -
धूप आने दो
कब से आ मन में समाये
और नहीं अब बोलूँगा
सुख दुख
प्राणप्रिय 'काव्य' तेरा स्वागत
जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक
आज भी याद है मुझे
ओ पिता !
अपरिचिता
द्वितीय सर्ग
तम की कोख सवेरा
कृति पीड़ा
जीवन बाँसुरी
स्वागत हे नव वर्ष !
लहरों के आने तक
कौन हूँ मैं...
मैं क्या जानूँ...
पुरू
क्रमशः
आया बसंत
तुम्हारा रिश्ता
स्वयं बोध
समय
निर्बंध हुआ है हर यौवन
हॄदय पर हस्ताक्षर
तुम्हारी पदचाप
महंगाई के डण्डे
घिन आने लगी है 'घोड़ामण्डी' से
धूप आने दो
कब से आ मन में समाये
और नहीं अब बोलूँगा
सुख दुख
प्राणप्रिय 'काव्य' तेरा स्वागत
जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक
आज भी याद है मुझे
ओ पिता !
अपरिचिता
द्वितीय सर्ग
तम की कोख सवेरा
कृति पीड़ा
जीवन बाँसुरी
स्वागत हे नव वर्ष !
लहरों के आने तक
कौन हूँ मैं...
मैं क्या जानूँ...
पुरू
क्रमशः
आया बसंत
तुम्हारा रिश्ता
स्वयं बोध
समय
निर्बंध हुआ है हर यौवन
हॄदय पर हस्ताक्षर
तुम्हारी पदचाप
महंगाई के डण्डे
घिन आने लगी है 'घोड़ामण्डी' से
कहानी-कलश पर इनकी तिथि- ४थी