लेखक की काव्य-बेल के बीज संभवत: अपने नाना के भजन सुनते-सुनते पड़े, फ़िर इनकी आई जो विशेष अवसरों पर त्वरित कविता करती और बड़े चाव से सबको सुनाती और सराहना पाती थी, ने अचेतन मे पड़े काव्य-बीज की सिंचाई की। दादी की कहानियाँ इन्हें कविता के प्रारंभिक विषय उपलब्ध कराती रहीं, पर साहित्य साधना के लिये अत्यंत आवश्यक अध्ययन सामग्री इनके बाबा ने जो स्वयं मराठी साहित्य मे काफी रुचि रखते हैं, बड़ी मात्रा में उपलब्ध करवाया, इसके अलावा समय-समय पर इनके मामा ने जो स्वयं अच्छे कवि एवं लेखक भी हैं, इनका उचित मार्गदर्शन किया और इनकी गलतियों को सुधारने में इनकी सहायता की। तो एक प्रकार से साहित्य की यह बेल पारिवारिक लालन-पालन से विकसित हुई।
विभिन्न कवियों की रचनाएँ एवं बृहत् साहित्य पढ़ते-पढ़ते लेखन शैली में बदलाव भी आता रहा एवं अंतत: इन्होंने स्वयं की एक वाचन पद्धति बना कर उसके अनुरूप लिखना प्रारंभ किया जिसमें इनकी समस्त रचनाएँ (कविता, हानी, ग़ज़ल, लेख इत्यादि) पिरोई हुई हैं |
कॉलेज़ के दिनों मे इन्हें गजलें सुनने-पढ़ने का चाव हुआ और इस विधा में भी लेखन प्रयास करते रहते हैं , हां इसी विधा के प्रभाव से इन्होंने अपना उपनाम "रुह" रख लिया।
आज इनकी यह काव्य-बेल रोज़ एक नया सोपान चढ़ रही है और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित रचनाएँ और मेरी प्रकाशित पुस्तक "शब्द-यज्ञ" इस बेल की पुष्प बन कर सरस्वती को नमन कर रही हैं।
"जाने क्या क्या लिखता रहता है बैठ कर |
पढ़ कर देखें "रुह" के ज़ज़्बात,चलो आओ ||"
जन्म : २५/०४/१९७५, भोपाल (म.प्र.)
शिक्षा : एम. काम.,एम. एस. सी. ( कम्पयुटर साईंस )
वर्तमान व्यवसाय : साफ्टवेयर इंजीनियर, पुणे ( महाराष्ट)
ईमेल: rishikeshkhodke@gmail.com , rishikeshkhodke@yahoo.co.in
ब्लाग(चिट्ठा) : http://shabdayagya.blogspot.com , http://mahaanagarkaakavya.blogspot.com
बाल-उद्यान पर इनकी तिथियाँ- १०वीं और २४वीं