संगीतबद्ध गीत
पहले एल्बम 'पहला सुर' से
दूसरे सत्र से
'इंडो-रशिया मैत्री गीत'
सभी गीतों को सुनें-
पहले एल्बम 'पहला सुर' से
दूसरे सत्र से
- संगीत दिलों का उत्सव है
- बढ़े चलों
- आवारादिल
- मैं नदी
- जीत के गीत
- ओ मुनिया
- डरना झुकना छोड़ दे
- ओ साहिबा
- तू रूबरू
- One Earth- हमारी एक सभ्यता
'इंडो-रशिया मैत्री गीत'
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आवाज़-मंच के सम्पादक
सजीव सारथी का नाम इंटरनेट पर कलाकारों की जुगलबंदी करने के तौर पर भी लिया जाता है। हिन्द-युग्म के वर्चुएल-स्पेस में गीत-संगीत निर्माण की नई और अनूठी परम्परा की शुरूआत करने का श्रेय सजीव सारथी को जाता है। अक्टूबर 2007 में सजीव ने संगीतकार ऋषि एस के साथ मिलकर कविताओं को स्वरबद्ध करने की नींव डाली। सजीव के निर्देशन में ही हिन्द-युग्म ने 3 फरवरी 2008 को अपना पहला संगीतमय एल्बम 'पहला सुर' ज़ारी किया जिसमें 6 गीत सजीव सारथी द्वारा लिखित थे।
4 जुलाई 2008 से हिन्द-युग्म ने अपने 'आवाज़' मंच की विधिवत शुरूआत की, जिसका दायित्व सजीव सारथी को सौंपा गया। सजीव ने यह दायित्व बखूबी निभाया। 4 जुलाई से लेकर 31 दिसम्बर 2008 तक सजीव के नियंत्रण में प्रत्येक शुक्रवार एक गीत रीलिज किया गया, जिससे 60 से अधिक कलाकारों (गायकों, संगीतकारों और गीतकारों) को एक विश्वव्यापी मंच मिला। आवाज़ ने 'पॉडकास्ट कवि सम्मेलन', 'सुनो कहानी', 'ओल्ड इज़ गोल्ड', 'महफिल-ए-ग़ज़ल', 'ताज़ा सुर ताल', 'ऑनलाइन पुस्तक विमोचन', 'गीतकास्ट प्रतियोगिता' जैसे कई लोकप्रिय स्तम्भों की शुरूआत की। दूसरे सत्र के संगीतबद्ध गीतों को रीलिज करने की कड़ी में सजीव सारथी द्वारा 10 गीत लिखे गये। सजीव ने भारत में रूसी दूतावास के लिए 'भारत-रूस मित्रता' पर 'द्रुज़बा' गीत की रचना की।
जन्म हुआ २४ फरवरी १९७४ को दक्षिण भारत के एक छोटे से गाँव में। चार साल के थे जब दिल्ली आये, तब से यहीं हैं। बचपन से ही साहित्य , संगीत और सिनेमा , इनके जीवन के आधार रहे, वाणिज्य में सनातन किया ताकि कोई अच्छी नौकरी मिले वो मिली भी, पर मन हमेशा रचनात्मक कार्य-कलापों में ही लगा। स्कूल से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी शुरू हो चुकी थी, जो कॉलेज़ में पहुँच कर अपने चरम पर पहुँची।
मूलतः एक गीतकार हैं, जो कविताओं में अपने आपको तलाश करते हैं, कहानी-पटकथा-संवाद भी लिख लेते हैं, कुल सात लघु फ़िल्में और ३ फुल लेंथ फिल्मे लिख चुके हैं, जिनमें से मात्र दो लघु फिल्मों को ही बन कर प्रसारित होने का सौभाग्य मिल पाया है, एक संगीत समुदाय के सदस्य हैं, दो धारावाहिकों के लिए शीर्षक गीत लिखने के साथ साथ बतौर सह निर्देशक भी काम कर चुके हैं ..... और कोशिशें जारी है।
गीतकार कवियों को अधिक पढ़ते हैं, इसलिये जाहिर है कि गुलज़ार साब, जावेद अख़्तर, निदा फ़ाज़ली, नीरज, इंदीवर, मजरूह, रविंद्र जैन सभी धड़कनें हैं इनकी, यूँ तो थोड़ा-थोड़ा निराला, नागार्जुन, बशीर बद्र, मीर, ग़ालिब सभी को पढ़ा है। शैलेंद्र इनके अतिप्रिय हैं जिनकी इन दो पक्तियों में इनके अनुसार इनके जीवन का सार है-
" आबाद नहीं बरबाद सही, गाता हूँ ख़ुशी के गीत मगर,
जख्मों से भरा सीना है मेरा , हँसती है मगर ये मस्त नज़र "
संपर्क-
७७७, सेक्टर ६
आर के पुरम, नई दिल्ली-११००२२
sajeevsarathie@gmail.com
09871123997
प्रकाशित कवितायें
- आम आदमी (पुरस्कृत कविता)
- दाग (पुरस्कृत कविता)
- स्पर्श (पुरस्कृत कविता)
- बारिशों में भीगता शहर
- मिट्टी
- रात
- फूलों की बात पर
- नौ महीने
- एक और अन्त
- दहशत
- हुजूम
- अवकाश (ब्रेक)
- एक छत के नीचे
- दोहराव
- दीवाली की रात
- मौत
- उसका कमरा
- दर्द
- नौ क्षणिकायें
- फतवों के पैबंद
- मंदिरों-मस्जिद की दरकार नहीं
- बे-शिनाख़्त
- किसका शहर
- शह और मात
- ऐसी कोई कविता
- सिगरेट
- दीवारें
- बहुत देर तक
- रूठे रूठे से हबीब
- कभी यूं भी आ
- ठप्पा
- विडम्बना
- सूरज
- विलुप्त होते किसान
- शब्द
- आम चुनावों में आम आदमी - "विकल्पहीन"
- दिन के स्याह उजाले
मुलाक़ात
हिन्द-युग्म के 'पहला सुर' की सफलता के बाद सजीव सारथी का साक्षात्कार एआईआर एम-रैनबों और सामुदायिक रेडियो डीयू-एमएम पर प्रसारित किया गया। सजीव सारथी के साथ बातचीत नीचे के प्लेयर से सुनें।
हिन्द-युग्म के 'पहला सुर' की सफलता के बाद सजीव सारथी का साक्षात्कार एआईआर एम-रैनबों और सामुदायिक रेडियो डीयू-एमएम पर प्रसारित किया गया। सजीव सारथी के साथ बातचीत नीचे के प्लेयर से सुनें।

नाम- मास्टर अक्षय चोटिया

इनका जन्म 7 जुलाई, 1986 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के 'जिवाना गुलियान' गाँव में हुआ। माता-पिता संगरिया (राजस्थान) में अध्यापक हैं, अत: शिक्षा-दीक्षा संगरिया में ही हुई। इंजीनियर बनने की लगन के साथ-साथ साहित्य का शौक चलता रहा और एक नन्हा सा कवि बचपन से ही भीतर पलता रहा। एक दिन हाथों ने लेखनी को थाम ही लिया और लेखन शुरू हो गया। 15 वर्ष की आयु में काव्य-लेखन आरंभ किया। कवि के अनुसार वे अधिक संवेदनशील हैं, इसलिये आसपास जो कुछ भी छोटा-बड़ा दिखता रहा, वे उसे कागज पर उकेरने लगे।
लेखक का जन्म ६ सितम्बर १९७५ को पटना में हुआ। लेखक ने आइ. एस. एम. ,धनबाद से अभियांत्रिकी में डिग्री ली।
तुषार जोशी का जन्म महाराष्ट्र राज्य के नागपुर नगर में हुआ। ये ज्यादातर कविताएँ मराठी में लिखतेँ हैं। इन्हे हिन्दी से लगाव है। कुछ कविताएँ ये हिन्दी में भी लिखते हैं। इनका मराठी साहित्य
इनका जन्म गाडरवारा जिला नरसिहपुर मे 28 मार्च 1988 को हुआ। इनके जन्मोपरांत सारा परिवार भोपाल के निकट होशंगाबाद मे आकर बस गया। कवि की पूरी शिक्षा-दीक्षा भी यहीं पर हुई। इन्होंने जिस विद्यालय मे शिक्षा ग्रहण की उसी विद्यालय में इनकी माताश्री श्रीमती आभा शुक्ला हिन्दी की शिक्षिका हैं। वे बचपन में विभिन्न अवसरों के लिए इन्हे कविताएँ लिख कर देतीं और यह मंच पर सबके सामने सुनाते| इस तरह कवि बनने से पहले से ही कविताओं से नाता रहा |
काव्य या यूँ कहें कि साहित्य से इनका लगाव बचपन से ही रहा। इनके पिता जी को हिन्दी काव्य में गहरी रूचि थी। अकसर उनसे कविताएँ सुनते-सुनते कब खुद भी साहित्य-प्रेमी बन गये, पता ही नहीं चला। घर में महाभारत, गीता आदि कुछ धार्मिक किताबें थीं, उनसे स्वाध्याय की जो शुरूआत हुई, वह वक़्त गुजरने के साथ-साथ शौक से ज़रूरत बन गयी। परन्तु अब तक पढ़ने का ये शौक सिर्फ पढ़ने तक ही सीमित रहा था, कभी स्वयं कुछ लिखने का प्रयास नहीं किये। कुछ समय पूर्व बज़रिये अंतरजाल शैलेश भारतवासी के संपर्क में आए तो पढ़ने के इस सिलसिले को एक नयी दिशा मिली। जिनके कहने पर पहली बार कुछ लिखने का प्रयास किये। हालाँकि अजय यादव के विचार में काव्य में कुछ कहने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, पाठक को स्वयं किसी विषय पर विचार करने के लिये प्रेरित करना और इस लिहाज से अभी ये खुद को कवि नहीं कह सकते। पर फ़िर भी मन में उठने वाले विचारों को काग़ज़ पर उतार देने का प्रयास करते हैं। यदि इनके इस प्रयास से किसी को एक पल की खुशी मिल सके, किसी को अपने दुख में सांत्वना मिल सके या किसी विषय विशेष की तरफ पल भर को ही सही पाठक का ध्यान आकर्षित हो सके तो ये अपने प्रयास को सार्थक समझेंगे।
जन्म बिहार के चम्पारण जिले के गाँव रामपुरवा में हुआ । बचपन गाँव 
जन्म: 14 मार्च, 1956
कवि पंकज तिवारी का जन्मस्थान श्रीकांत का पुरवा (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) है। कविता से प्रथम सम्बन्ध, इनके बाबा जी (दादा जी) के द्वारा इनसे तुलसीकृत 'रामचरित मानस' का पाठ करवाना से है। जब माध्यमिक कक्षाओं के अध्ययन के लिए फ़ैजाबाद आना हुआ, तो वहाँ के वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों (जैसे स्वतॅत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि) में फिल्मी धुनों पर राष्ट्रभक्ति गीत लिखने का अवसर प्राप्त हुआ।, परन्तु कविता को इन्होंने समीप से तब जाना, जब ये इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए इलाहाबाद आये। कुछ कवि सम्मेलनों में जाने का अवसर भी मिला। सन् २००१ में कवि मनीष वंदेमातरम् के सम्पर्क में आने के पश्चात जैसे इनकी अनुभूतियों को पंख मिल गया। हिन्दी-गजल के संकलन की एक पुस्तक 'गजल-ए-हिनदुस्तानी' इनको बहुत प्रिय रही, विशेषरूप से महाकवि गोपालदास नीरज की गजलें। सन् २००२ के अगस्त के महीने में, कवि ने राजकुमार गोएल तकनीकी एवम् प्रबंधन संस्थान, गाज़ियाबाद में प्रवेश ले लिया, जहाँ "रैगिंग" नामक रस्म के समय वरिष्ठ छात्रों ने इनकी अभिरूचि जाननी चाही, इन्होंने कविता लिखना-पढ़ना बता दिया। कवितावाचन की इनकी शैली इतनी सुन्दर है कि जो इक बार सुन लेता है, बार-बार सुनना चाहता है। "फ्रेशर फंक्शन" में आखिर इन्हें कुछ सुनाना ही था तो कलम उठायी और कुछ कविताएँ लिख ही डाली। खूब वाह-वाही बटोरा। तब से अब तक अनवरत लिख रहे हैं। वर्तमान में कवि पंकज TCS नामक सॉफ़्टवेयर कम्पनी में साँफ़्वेयर इंजीनियर हैं।