रचना श्रीवास्तव


जन्म- 5 सितम्बर लखनऊ (यूपी)।
रचना को लिखने की प्रेरणा बाबा स्वर्गीय रामचरित्र पाण्डेय और माता श्रीमती विद्यावती पाण्डेय और पिता श्री रमाकांत पाण्डेय से मिली। भारत और डैलस (अमेरिका) की बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया, और डैलास में मंच संचालन भी किया। अभिनय में अनेक पुरस्कार और स्वर्ण पदक मिला, वाद-विवाद प्रतियोगिता में पुरुस्कार, लोक संगीत और न्रृत्य में पुरुस्कार, रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ। कृत्या, साहित्य कुञ्ज, अभिव्यक्ति, सृजन गाथा, लेखिनी, रचनाकर, हिंद-युग्म, हिन्दी नेस्ट, गवाक्ष, हिन्दी पुष्प, स्वर्ग विभा, हिन्दी-मीडिया इत्यादि में लेख, कहानियाँ, कवितायें, बच्चों की कहानियाँ और कवितायें प्रकाशित।

हिन्द-युग्म के सितम्बर 2008 माह के यूनिपाठक तथा दिसम्बर 2008 माह के यूनिकवि सम्मान से सम्मानित।

अभिव्यक्ति द्वारा आयोजित कथा-महोत्सव में इनकी एक कहानी प्रकाशन के लिए चुनी गई।

हिन्द-युग्म के काव्य-मंच पर मंगलवार को स्थाई लेखन।

पीयूष पण्डया


इनका जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में 29 फ़रवरी 1988 को हुआ। पिता अनिल भाई पंडया कृषि उपज मंडी में कार्यरत थे तथा माँ माधुरी बेन पंडया निहायत आध्यात्मिक गुजराती घरेलू महिला थीं। परिवारिक पृष्ठभूमि का दूर से भी साहित्य से कोई संबंध नहीं था, परंतु प्रोत्साहन सदैव मिला। पिता कहते थे-" हमेशा टशण में रहो पर इसके लिए तुम्हें यह पता होना ज़रूरी है कि तुम अपनी काबिलियत का यूज़ कैसे करते हो...इसके बिना तुमने अकड़ दिखाई तो मूर्ख कहलाओगे और यहाँ सभी में काबिलियत है, सो सबका सम्मान करो पर तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम स्पेशल हो"। पीयूष कहते हैं- "मेरा परिवार अवस्थी परिवार (तारे ज़मीन पर) की तरह ही था। कला का पुट मुझमें माँ ने ही डाला और सच कहूँ तो कक्षा 7 तक मेरे जूते मुझे माँ ही पहनाया करती थीं। पिता का स्थानांतरण होता रहता था सो घूमने को बहुत मिला। गाँवों को, आदिवासियों को महसूस किया है। फिर आए होशंगाबाद यानी की नर्मदापुरम, नर्मदा की नगरी। 6 से 12 वी तक यहीं रहा। अनिला मैम और गुरु मैम से काफ़ी प्रोत्साहन मिला, अत: आभारी हूँ। इसके पश्चात महाविद्यालय में संपादक बनना बड़ी उपलब्धि थी। अब तक स्वयं के लिए लिखने वाला क्षेत्र व्यापक हो रहा था, और अब पीछे नहीं देखना था पीछे था"

फिलहाल मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल में वास्तुकला अभियांत्रिकी के पंचम वर्ष के छात्र हैं। ग्राफिक्स डिजाइनिंग का बीज इनमें यहीं से पड़ा जब ये महाविद्यालय की पत्रिका 'एक्सेलसियर' की संपादकीय टीम में सम्मिलित हुए। पत्रिका के लिए तो वैसे हिन्दी-संपादक के तौर पर चयन हुआ था, लेकिन वहाँ इन्होंने ग्राफिक्स डिज़ाइनिंग का भी हुनर दिखाया।

शुरू में ये हिन्द-युग्म से भी कवि के रूप में ही जुड़े थे, लेकिन जल्द ही इन्होंने हिन्द-युग्म के ग्राफिक्स डिजाइनिंग का काम शुरू कर दिया। अगस्त 2007 से ये हिन्द-युग्म की ग्राफिक्स डिजाइनिंग का हिस्सा सम्हाले हुए हैं।

नाज़िम नक़वी

इनका परिचय इन्हीं की ज़ुबानी
शायद दुनिया का सबसे मुश्किल काम है अपना परिचय देना। काश सब यही कहते कि " बुल्ला कि जाणा मैं कोन?"। मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली, ऊंचाहार में हुआ। घर की तरबियत में शराफ़त भी थी, इल्म भी था, और शायरी भी। बीए इलाहाबाद से किया और सच मानिये तो शायरी का चस्का इसी शहर ने लगाया। अपने क़स्बे के नाम पर नाज़िम मुस्तफ़ाबादी के तख़ल्लुस से लिखना शुरू किया। शुरू शुरू में मुशायरे और कवि सम्मेलनों में जाने की बड़ी फ़िक्र रहती थी। शायद कुछ पैसे और वाह-वाह की भूख इसकी वजह रही हो। लेकिन वो माहौल (शुक्र है) अपनी तबीयत को रास नहीं आया। कभी कोई ऐसी पढ़ाई या इम्तेहान नहीं दिया जो नौकरी मिलने की आस जगाता हो। पत्रकार बनने का सपना कभी नहीं टूटा, घरवालों की नाराज़गी के बावजूद भी नहीं। छोटे से साप्ताहिक समाचार-पत्र इलाहाबाद केशरी के संपादन से जेब ख़र्च की कमी को पूरा किया। अपने क़स्बे से एक शाम का दैनिक समाचार " ऊंचाहार मेल" की शुरूआत की जो सिर्फ़ 45 अंक के बाद बंद करना पड़ा, पैसे ख़त्म हो गये थे।

दिल्ली आया और विनोद दुआ की शरण में जगह मिल गई, स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर। बस तब से लेकर आजतक, पिछली एक दहाई से इसी टीवी और फ़िल्मों की दुनिया में कुछ सार्थक कर पाने की जुगत में हूं। क्या-क्या किया ये बताना ठीक नहीं, लगेगा नौकरी के लिये बायो-डाटा लिख रहा हूं।

1.हिन्द-युग्म के तीसरे अतिथि कवि

2.हिन्द-युग्म पर कविता लेखन-संपादन, आलेख लिखने (बैठक तथा आवाज़ पर) तथा हिन्द-युग्म की जमीनी आयोजनों में सक्रिय


रश्मि प्रभा

जन्म- 13 फरवरी, सीतामढ़ी (बिहार)
शैक्षणिक योग्यता- स्नातक (इतिहास प्रतिष्ठा)
रुचि- कलम और भावनाओं के साथ रहना।
प्रकाशन- "कादम्बिनी" , "वांग्मय", "अर्गला", "गर्भनाल" और कुछ महत्त्वपूर्ण अखबारों में रचनायें प्रकाशित

सौभाग्य इनका कि ये कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हैं और इनका नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और इनके नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ इनके नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन"।
शब्दों की पांडुलिपि इन्हें विरासत में मिली है। अगर शब्दों की धनी ये ना होती तो इनका मन, इनके विचार इनके अन्दर दम तोड़ देते...इनका मन जहाँ तक जाता है, इनके शब्द उसकी अभिव्यक्ति बन जाते हैं। यकीनन ये शब्द ही इनका सुकून हैं...कब शब्द इनके साथी हुए, कब इनके ख़्वाबों के सहचर बन गए, कुछ नहीं पता.... इतना याद है कि शब्दों से खेलना इन्हें इनकी माँ ने सिखाया. जिस तरह बच्चे खिलौनेवाला घर बनाते हैं, माँ ने शब्दों की टोकरी दी और कभी शाम, कभी सुबह, कभी यात्रा के मार्ग पर शब्दों को रखते हुए ये शब्द-शिल्पी बन गईं। व्यस्तताओं का क्रम बना, पर भावनाओं से भरे शब्द दस्तक देते गए .... शब्दों की जादुई ताकत माँ ने दी, कमल बनने का संस्कार पिता (स्व.रामचंद्र प्रसाद) ने, परिपक्वता समय की तेज आँधी ने।
सपने इनकी नींव हैं - क्योंकि इनका मानना है कि सपनों की दुनिया मन की कोमलता को बरकरार रखती है...हर सुबह चिड़ियों का मधुर कलरव - नई शुरूआत की ताकत के संग इनके मन-आँगन में उतरा...ख़ामोश परिवेश में सार्थक शब्दों का जन्म होता रहा और ये अबाध गति से बढती गईं और यह एक और सौभाग्य कि आज यहाँ हैं....अपने सपने, अपने आकाश, अपने वजूद के साथ!

निजी ब्लॉग- http://lifeteacheseverything.blogspot.com/

हिन्द-युग्म पर नियमित लेखन / निर्धारित दिन- रविवार

मनु बे-तखल्लुस


मूल नाम- मनोज बंसल
जन्म- 2 मार्च 1967.......(दिल्ली में ही )
फ़ोन नंबर- 09818753303

शौक- कुछ कहानी, ग़ज़ल वगैरह लिखना, पेंटिंग करना, शांत क्लासिकल संगीत सुनना, कभी-कभार रसोई में कुछ पका लेना ( मजबूरी में नहीं, मूड हुआ तो)

पहला प्रकाशन- ज़ाहिर है हिंद युग्म पर......

युग्म से जुड़ने का विशेष कारण- सबसे पहला तो यही के अंतरजाल पर सबसे पहले युग्म ही मिला था। इसके अलावा यहाँ पर ही जीवन में आये कुछ ख़ास मित्र। एक और बड़ी बात के युग्म ने हमारी नादानियाँ, गुस्ताखियाँ, बेबाकियां..... सब बहुत ही अपनेपन से झेली हैं।

हिन्द-युग्म पर कार्टून निर्माण और लेखन में सहयोग


अरुण मित्तल अद्‍भुत

प्रकाशित कविताएँ


  1. मैं अपने छंद सुनाता हूँ

  2. माँ(पुरस्कृत)

  3. पूछते हैं वो मुझसे मुहब्बत है क्या(पुरस्कृत)

  4. दिल था उसके पास लेकिन साथ में दिलबर न था(पुरस्कृत)

  5. वो अपने आंसुओं को घर से ही पीकर निकलता है(पुरस्कृत)

  6. सबसे बड़ा डर(पुरस्कृत)

  7. खून में ज्वार अब नहीं उठता

  8. गजल "अरुण मित्तल अद्भुत"

  9. दफ्न कर दो मुझे

  10. तीन रंगों से बड़ा कोई
    नहीं

  11. अकेला वो घर धूप में

  12. बोल कैसा बेवफा कह दूं उसे

  13. गजल.....होता नहीं खजाना अच्छा ........

  14. गजल "अरुण मित्तल अद्भुत"

  15. गजल "अरुण मित्तल अद्भुत

  16. आया फिर से सावन आया.....

  17. गौर से देखना चिरागों को..........(अरुण मित्तल 'अद्भुत' की गजल)

  18. भारत में जब हर कागज़ पर हिंदी में लिक्खा जाएगा

  19. मेरे प्रियतम पास हैं मेरे

  20. यह कैसा सन्देश .........



जन्मस्थान- चरखी दादरी, जिला-भिवानी, हरियाणा
जन्म तिथि- 21-02-1985
शिक्षा- एम. बी. ए., एम. फिल., पी जी डी आर एम, पी. एच. डी. (शोधार्थी)।
कार्यक्षेत्र- प्रवक्ता, (प्रबंध), बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान (समतुल्य विश्वविद्यालय) ए -7 सेक्टर-1 नोएडा।
प्रकाशित रचनाएं- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में 200 से अधिक कविताएं, गजलें, लेख, लघुकथाएं, कहानियां आदि प्रकाशित।

सम्मान-पुरस्कार
1. चरखी दादरी अग्रवाल सभा द्वारा ‘अग्रकुल गौरव‘ से सम्मानित।
2. लायंस क्लब, भिवानी द्वारा ‘साधना सम्मान‘।
3. मानव कल्याण संघ, चरखी दादरी द्वारा ‘साहित्य सेवी सम्मान‘।
4. दिल्ली प्रैस द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ‘युवा कहानी प्रतियोगिता-2005‘ में कहानी ‘गलतफहमी‘ को द्वितीय पुरस्कार।
5. विभिन्न मंचीय प्रतियोगिताओं मे लगभग 20 पुरस्कार।
6. स्थानीय गोष्ठियों से लेकर राष्ट्रीय हिन्दी काव्य मंचों से काव्य पाठ।
7 हिन्दी पद्य साहित्य में नारी विषय पर राष्ट्रीय अधिवेशन में शोध पत्र प्रस्तुत।
8.हिन्द-युग्म द्वारा आयोजित यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता में फरवरी 2009 के यूनिपाठक सम्मान से सम्मानित

विशेष उल्लेख-
1. अंतरजाल पत्रिका रचनाकार, अनुभूति एवं सृजनगाथा, हिन्द युग्म में कविताएं एवं लेख प्रकाशित
2. हिन्दी छंद एवं ग़ज़ल व्याकरण में विशेष निपुणता मुख्यतः छंदबद्ध कविताओं का लेखन।
3. आकाशवाणी रोहतक एवं जैन टी वी, दिल्ली से काव्य पाठ।
4. अप्रकाशित महाकाव्य वीर बजरंगी का लेखन।
5. हिन्दी भवन, दिल्ली में दिशा फाउण्डेशन द्वारा विशेष रूप से युवा कवियों के लिए आयोजित कवि सम्मेलन 'दस्तक नई पाढ़ी की' में काव्य पाठ।

हिन्द-युग्म पर नियमित लेखन / निर्धारित दिवस- शुक्रवार