अनिल वत्स

भैरवाँ (बलरामपुर, उत्तर प्रदेश) में जन्मे कवि अनिल वत्स कविता के नवीनतम खिलाड़ी हैं। इनके अपने शब्दों में इन्होंने कभी सोचा भी नहीं था, ये कभी कविता जैसी सृष्टि का सृजन करेंगे। जून २००५ तक, कवि मनीष वंदेमातरम्, कवि पंकज तिवारी और कवि शैलेश भारतवासी की कविताओं का मात्र रस लेते आये थे। इसी वर्ष, जुलाई के महीने में कवि ने इलाहाबाद कृषि संस्थान (समतुल्य विश्वविद्यालय) में परास्नातक (जैवरसायनिकी) के अध्ययन के लिए प्रवेश ले लिया। प्रत्येक संस्थान की आवश्यक रीति "रैगिंग" अनिल में कविता-उत्कर्ष का हेतु बनी। वरिष्ठ साथियों को मनीष जी की कविताएँ सुनाते रहें, परन्तु कब तक सुनाते, सोचा, क्यों ना स्वयम् ही कुछ रचा जाय। कुछ लिखा, भारतवासी और वंदेमातरम् ने खूब प्रोत्साहित किया, इन कविताओं को वे अधिक आत्मविश्वास से पढ़ते गये और देखते ही देखते कवि हो गये। कवि ने हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' को अपनी तरह से लिखना आरम्भ किया, लगभग ६० से अधिक छन्द लिख चुके हैं। प्रेम पर एक विवेचना लिखना चाहते हैं। वर्तमान में आई आई टी, दिल्ली में शोधरत हैं।

रचनाएँ-
'अपनी मधुशाला' (६०-७० छन्द), अप्रमाणित पच्चीस से अधिक कविताएँ।


सम्पर्क-


अनिल वत्स
१, जिया सराय,

आई आई टी गेट के पास,
हौज़ खास, नई दिल्ली-११००१६
ई-मेल- vatsa001 at gmail dot com
मो॰- ९९९९२२६३७९

इनका वार- बुधवार


योगदान -